Janani He Katek Bhelahun Apradhi Lyrics
जननि हे कतेक भेलहुँ अपराधी,
अहिँक चरण हम नित दिन सुमिरल,
किए रहलहुँ अछि साधि।
जननि हे कतेक भेलहुँ अपराधी।
आनक शरण कतहु नहि गेलहुँ,
अहिँक चरण रज माथ चढ़ेलहुँ,
किए रखलहुँ दृग बाँधि।
जननि हे कतेक भेलहुँ अपराधी।
अहिँक कृपा बल सब जन पबइछ,
अन्नपूर्णा कहि सब गुण गबइछ,
रहलहुँ हमहुँ अराधि।
जननि हे कतेक भेलहुँ अपराधी।
मा-मा-मा कहि सुमिरल अम्बे,
जननि अहाँ जनि करिअ विलम्बे,
दिअ दुर्गुण सब टारि।
जननि हे कतेक भेलहुँ अपराधी।
जे जन थोड़बहु अहाँ के मनओलक,
से ओतबहि मे सब किछु पओलक,
हमरा किएक तबाही।
जननि हे कतेक भेलहुँ अपराधी।
अर्थ पिपासुक लम्पट लोभी,
आइ चतुर्दिश दुर्मति क्रोधी,
खुनइछ सभतरि खाधि।
जननि हे कतेक भेलहुँ अपराधी।
दुर्गे दुर्गति नाशिनि अम्बे,
काली कालजयी जगदम्बे,
हरु 'प्रदिपक' सब व्याधि।
जननि हे कतेक भेलहुँ अपराधी।
रचनाकार: मैथिली पुत्र प्रदीप (प्रभुनारायण झा)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
अपन रचनात्मक सुझाव निक या बेजाय जरुर लिखू !