गुरुवार, 7 अप्रैल 2016

करू माँ ज्ञान हमर विस्तार लिरिक्स - Karu Maa Gyan Hamar Vistar Lyrics

करू माँ! ज्ञान हमर विस्तार, करु माँ! ज्ञान हमर विस्तार। 
एहन बुद्धि नहि जेहि सँ केवल जागय स्वार्थ विचार।
करू माँ! ज्ञान हमर विस्तार॥

ककरो अहित करी नहि कखनहु सब जन हेतु संवेदन। 
दृष्टि दिअ से करी सुचिन्तन श्रद्धा हिय संचालन। 
ऊँच-नीच केर भाव ने चाही, चाही सौम्य विचार। 
करू माँ ! ज्ञान हमर विस्तार॥

वाणी मे वाणीक कृपा हो, प्रभुक भजन अभिगुञ्जन। 
राम नाममे देखि सकी माँ! अहिंक शक्ति सम्मोहन। 
हे माँ अहिंक दया सागरमे डुबल रही सदिकाल। 
करू माँ! ज्ञान हमर विस्तार॥

छुच्छ साधना, विनु उपासना, केवल सुधि संसारी। 
माँ! अपनेक कृपा दृग चाही, सब दुर्भाव विसारी। 
काम-क्रोध, मद, लोभ, मोह सँ हो प्रदीपक उद्धार। 
करू माँ ! ज्ञान हम विस्तार, करू माँ ! ज्ञान हम विस्तार॥

गीतकार: मैथिली पुत्र प्रदीप (प्रभुनारायण झा)

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