शुक्रवार, 4 मार्च 2016

परदेसिया के चीठी लिखथि बहुरिया - Pardesiya Ke Chitti Likhthi Bahuriya

परदेसिया के चीठी लिखथि बहुरिया। 
पड़लइ अकाल, पिया काटइ छी अहुरिया॥

बहुत दिवस भेल, चिठियो ने आबइ, 
प्रकृति प्रचंड बनि, बहुत सतावइ । 
कहबैक ककरा सँ अपन विपतिया। 
पड़लइ अकाल, पिया काटइ छी अहुरिया॥

पैंच उधार कियो - ककरो ने दइ छइ। 
कोटा जे भेटइ छइ, से बड़के लुटइ छइ।
रहब कोना के, घर लड़िका - लेधुरिया। 
पड़लइ अकाल, पिया काटइ छी अहुरिया॥

के कहतई, कोन पाप समेलई, 
नित दिन ऋण खाए, खेत बिकेलइ। 
नहि जानी कोना बाँचत इजतिया। 
पड़लइ अकाल, पिया काटइ छी अहुरिया॥

कुलक पुतहु बनि, कहु कतऽ जेबइ ?
ससुरक माथ - पाग कोना कऽ खसेबइ ।
घर ने ' प्रदीप ' मुदा बाहर इजोरिया।
पड़लइ अकाल , पिया काटइ छी अहुरिया॥

गीतकार: मैथिली पुत्र प्रदीप (प्रभुनारायण झा)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अपन रचनात्मक सुझाव निक या बेजाय जरुर लिखू !