प्रगटलहु मिथिला भू से धन्य धरती भेल ई,
भेल शीतल सकल धरती धन्य माता मैथिली।
बहुत तब धल जे घरा छल शस्य श्यामल भेल से,
भूख सँ आकुल जते छल तुष्ट तखने भेल से।
देल मर्यादा अहाँ एहि माटि कैं हे मैथिली,
रहत जन युग युग ऋणी बनले अहाँ सँ मैथिली।
जन जनक जे जनक तनिका देल मर्यादा अहाँ,
छल लिलोह निठोर सबहक बनि गेल माता अहाँ।
स्वयं मर्यादाक पुरुषोतम कहावथि राम जे,
से स्वयं जेहिठाम ऐला धन्य धरती भेल से।
हमर वाणी छथि सुशोभित से अहीं सँ मैथिली,
धन्य ई मिथिलाक धरती धन्य माता मैथिली।
जे अपाटक नहि बुझथि महिमा अहाँक हे मैथिली,
क्षमा हुनको क' देवनि अज्ञान छथि हे मैथिली।
हम प्रदीपित भेल छी महिमा अहिक माँ मैथिली,
धृष्टता हमरो करब सब माफ माता मैथिली।
रचनाकार: मैथिली पुत्र प्रदीप (प्रभुनारायण झा)
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