रचनाकार - श्री विद्यापति
सासु जरातुरि भेली, ननन्दि अछलि सेहो सासुर गेली।
तैसन न देखिअ कोई, रयनि जगाए सम्भासन होई।।
एहि पुर एहे बेबहारे, काहुक केओ नहि करए पुछारे।
मोरि पिअतमकाँ कहबा, हमे एकसरि धनि कत दिन रहबा।।
पथिक, कहब मोर कन्ता, हम सनि रमनि न तेज रसमन्ता।
भनइ विद्यापति गाबे, भमि-भमि विरहिनि पथुक बुझाबे।।
>> विद्यापति के आन गीत सब
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