सुन्दर मास बैसाख, इजोरिया नवम तिथि हे आहे।
सिया अवतरण सोहाओन, अति मन भाओन हे ।।
छलइ सगरो भूमि तबधल, माटीमे फाटल दरारि हे।
प्रकृतिकेर प्रकोप देखि कऽ लोक मानथि हार हे ।।
जनक-सुनयना पालो कान्ह, पुनरिक लेल लागन हे।
ललना हे उमड़ल जन समुदाय, आयल शुभ अवसर हे ।।
बज्र पाॅंतर, चलल आँतर कृषिक यज्ञ महान हे।
गगनमे घन उमड़ि आयल, नभसँ झहरल बुन्द हे ।।
जनक- सुनयनाजीक पुण्य , पुण्डरिक तप एहिखन हे।
ललना हे प्रदीपित भेल सकल थल , हुलसित जन- जन हे ।।
छथि हलेश्वर शम्भु जेहिठाँ , पुण्डरिक तपभूमि जे।
चलल हर हलेष्ठि यज्ञक एक मोड़ गेल घूमि से ।।
धसल जतय मणिफार , उदार भेल महिधर हे।
ललना हे निकलल स्वर्ण पेटार ओतय सभ देखल हे ।।
माटि केर सुगन्धि पसरल , पुनौरा केर धाममे।
प्रगटली मिथिलाक महिसँ मैथिली जन प्राणमे ।।
ज्योतिम परम किशोरीक दर्शन पाओल हे।
ललना हे घर-घर आनन्द बधाइ सुखद दिन प्रगटल हे।।
गीतकार: मैथिली पुत्र प्रदीप (प्रभुनारायण झा)
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