हे जगजननी हे दयामयी,
हम गीत प्रीत के गाउ कोना
अछि राग हृदय में मलिन भेल,
अहिबातक पातिल दीप जेना
प्रिये भाव बिना नही प्रेम भक्ति
अपनेक चरण लऽग आबु कोना
हे जगजननी हे दयामयी
संसार सुपरिचित अपने सं,
हम निपट परिचित छी अम्बे
ज्ञानक प्रकाश दऽ सुझा दीय,
अपने बिनु होयत बिकास कोना
हे जगजननी हे दयामयी
युग युग संचित अभिलाषा हमर,
हे देवी होयत कहु पूर्ण कोना
आधे विकसित जीवन लऽ कऽ,
होयत विकास से आब कोना
हे जगजननी हे दयामयी
जीवन के उदय प्रखर भऽ के,
अवसानक देश जे जा रहलै
बिनु अहाँक सिनेह के हे जननी,
प्रतिकार एकर पुनि होयत कोना
हे जगजननी हे दयामयी
बढ़िते बढ़िते पथ भटकी गेलौं,
अंगा अछि विकट अन्हार जेना
अछि अंधकार हिये मंदिर में,
होयत प्रदीप बिनु ज्योति कोना
हे जगजननी हे दयामयी
रचनाकार: मैथिली पुत्र प्रदीप (प्रभुनारायण झा)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
अपन रचनात्मक सुझाव निक या बेजाय जरुर लिखू !