भरि राति जरैत छी दीप पिया
साँझ रहियहि हम मिझाय गेलौं
कनगुरियहि लागलि जाइत हम
नहि जानि कोना भुतियाय गेलौं
भोरक फक भेल चान जकाँ
गाठक टूटल पान जकाँ
खूजल खोइछक धान जकाँ
जँह तँह सगरी छिड़ियाय गेलौं
हम खढ थिकहुँ हम पात थिकहुँ
हम बिसरल कोनहुँ बात थिकहुँ
बिनु करुआरिक नाव जकाँ
जेम्हरे तेम्हरे भसियाय गेलों
थाकि गेलहुँ चलिते-चलिते
तारा डुबले गानिते-गानिते
काजर बहले कनिते-कनिते
हम अपनहि नोर नहाय गेलौं
पाथर रहितहुँ, रहबे करितहुँ
हम काठक जान धुनाय गेलौं
कह रवींद्र सब ठामक ठामहि
हम माँझहिं ठाम बिलाय गेलौं ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
अपन रचनात्मक सुझाव निक या बेजाय जरुर लिखू !