हवा रे हवा चल चल चल
चल मिथिला मे चल
जतय अनन्त वसन्त बसै यै
सुरभित आँखि तर
जन्म अछि जतए वरदान
श्मसानो पाबत सम्मान
मिथिला स्वयम सुसज्जा मंदिर
सोभथि चारु कोटि भगवान
जतए प्रवाहित सब सरिता में
उनमित सन निर्मल जल
जल देखय लै खेत खमार
होइतो श्रम दर्शन साकार
देखले हवा हऽर आ फार
जाहिसँ सीता केर अवतार
निरखि जकर अनुपम सुंदरता
रामो भेला बेकल
सहमल होयमे बात बात सँ
दर्शन होइतो सूर्य प्रभात सँ
परिचय होइतो स्वर्ग जात सं
तैं मिथिला के गाछ पात सँ
देह लगा कऽ शीश झुका कऽ
धरती के सटले चल।
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