गौरी अहाँ के महेश ।
भरिसक छथि किछु मति के विशेष ।।
अनका करथि शिव रंकसँ नरेश ।
अपना लै चाही भांग धथुर हमेश ।।
गौरी कोना पोसथिन कातिक गणेश ।
सह-सह करै छनि विषधर शेष ।।
घर परिवार के ने करै छथि उदेस ।
सेच ने फिकिर धयने जोगीके भेष ।।
कहथिन स्नेह छथि एहने महेश ।
छोड़ता ने चालि सब, पाकल छनि केश ।।
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