गौरी कोना रहैछी ये, भंखर सनकहबा संग गौरी कोना,
पर्वत ऊपर वास अहाँके बरफक बीच बसेरा,
सासु-ससुर नहि पास पड़ोसी भूत-प्रेत संग डेरा,
बेटा एक, मुँह हाथीके, दोसर पूत षडानन,
खेत-पथार न खरची घरमे अपनो छथि पंचानन,
मूसक दुश्मन साप, साप के दुश्मन मोर भयंकर,
सदा बाघ बसहा के दुश्मन वाहन पोसल शंकर,
कनक-कनैल जहरमे मातल, तै पर भांग पिबै छथि,
स्नेहलता घर कोना चलै छनि अपने कोना जिबै छथि,
एहन सावनमे बमभोला भंगियया बेसी खैयो ना,
ऊँच शिखर पर लागल हिडोला धीरे मचकैयो ना,
अति सुकुमारी कोमल गिरिजा हिनक सुधि लियौ ना,
बसह बाघम्बर भुजंग के डोरी गाबे हर हर ना,
भीड़ पड़य फुफकारय वासुकि स्नेह बिसरैयो ना,
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
अपन रचनात्मक सुझाव निक या बेजाय जरुर लिखू !