-:रास:-
गिरि कैलास के स्वर्ण शिखर पर रास रचल त्रिपुरारि,
तैतिस कोटि देव सब बैसल, धन-धन होथि निहारि।
पुरुष भेष केर मध्य सुशोभित गद्गद् शैलकुमारि ।।
विष्णु मृदंग रमापति गाइनि ताल देथि मुखचारि । सुरपति-शारद वीण बजाबथि राग समय अनुहारि ।।
सौंथ फाड़ी मुखचन्द्र सजाओल नयन कयल कजरारि। अंग-अंग सजि-साजि सम्हारल शिव भेला सुन्दर नारि ।।
सुरसरि धार समिटि घर गेली रूप धयल पनिहारि।
स्नेहलता ताण्डव शिव नाचथि तन-मन विरति बिसारि।।
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