जबसे कुमारी के परलेन सगुनमा से
सुधि बुधि सब विसराय गे माई।
दिन नाही चैन पड़े रातियो न निंद आवे,
घर रे आंगन न सोहाय गे माई ।
भोज भात बन्द करू बन्द करू बजबा से,
गाजा बाजा लागत बलाय गे माई।
लतिका सनेह अब चुप रहू बबनी से,
जीवन के साथी मुसुकाय के माई।
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