पावक गंगा लछुमना पावन निर्मल नीर,
यरुभूमि निर्धारिते सकल सिद्धिप्रद तीर,
बनल वेदिका यज्ञ के जानि समय अति अल्प,
जनक सुनयना व्रत-व्रती कयलि सुता संकल्प,
सित वैशाखक पंचमी ग्रह-नक्षत्र अनुकूल,
कयल यज्ञ आरंभ जत सुर बरसाओल फूल,
बरस बीति सित पंचमी आयल माधव मास,
देखि विफलता यज्ञमे भेला जनक उदास,
जगतविदित सभी माय के बेटी अति प्रिय होय,
पुरल न निज मनकामना कहथि सुनयना रोय,
पंचमीसँ पंचमी, बरिस दिन बीतल, छुछ पड़ि भेल, अरमान, माइ हे।
ठकि लेल मुनि सभ, ठकि लेल, नारद, झुठ भेल शिव वरदान ।
विधि विपरीत मोर, यज्ञ विफल भेल, करत मखोल जहान ।।
जौं नहि राम, जमाय बनायब, हति लेब अपन परान ।।
लतिकासनेह, हिया बिच मुरुझायल, विरहक ताप महान ।।
देखि सुनयना के विह्वलता, शतानन्द कर जोड़ि कहल।
धरु मन धीर, यज्ञ जनि छोडू, सिद्धि निकट अछि आबि रहल।।
यज्ञारंभक दिनसौं, बरिस पूरि गेल आइ मुदा
यद्यपि पावन परम पंचमी, लौकिक ऋद्धि सिद्धिप्रदा
षष्ठी स्वर्गक और सप्तमी, बैकुण्ठक थिक सिधिदायक
गेलोकक फल देत अष्टमी, धीरज धरु हे नरनायक
आदिशक्ति साकेतसँ अओती, नवमी पूर करत मनके
रानि सुनयना सुता खेल ओती, रहता मगन जनक सन के
अति प्रकाशमय वेदिका अति आह्वादित धार
गिरि कानन आनन्दमय शीतल सुखद बयार
दसो दिशा लखि शकुन शुभ अछि हमरा विश्वा
नवमी तिथिमे हे नृपति अवस पुरत अभिलाष
शतानन्द के सुनि प्रिय वाणी
लगला यज्ञ करय मुनि ज्ञानी
सुनि प्रिय वचन मगन नृपरानी
सुखइत धान पड़ल जनु पानी
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