मंगलवार, 29 मई 2018

लाबा भुजबा काल के गीत - मैथिली लोकगीत

लाबा भुजबा काल के गीत लिरिक्स

लाबा भूजय बैसली बहिनियां
चुलहा दहिनिया हे
हे सुन्दरि मंगल अग्नि पजारल हे
साजी पत्रमे राखल
लाबा पुनि भूजल हे
दुलहिन गृहमे बैसि जे ब्याहन हे
कहय हे सखि सब आनन्द मनाबिय
प्रभु गोहराबिय हे
जुगे-जुगे बढू़ आहिबात
कि अइहब गाबिय हे


शनिवार, 26 मई 2018

वन देवी दुर्गा मंदिर, सुगौना (बसौली)

मिथिला मे एक स एक स्थान अछि जतय जाकय किछु पल शान्ति स बितायल जा सकैयै । दरभंगा रहिका पथ पर तीर्थ स्थली कपिलेश्वर स दू किलोमीटर दक्षिण बसौली पंचायतक सुगौना गामक ( BASAULI,  SUGAUNA, RAHIKA ) निर्जन बाध मे सघन वरक गाछक वन मे अवस्थित अछि वन देवी दुर्गा मंदिर । एकर प्रधान पुजारी एही गामक भूतपूर्व मुखिया श्री राम औतार यादव कहै छथि जे एतय सघन वन छल । दिनो मे केओ नहि अबै छल । एही सघन वन मे माता वन देवी दुर्गा विराजमान छथि । एतय एला स सबहक मनोकामना पूर्ण होइ छै। गाछ सभ मे मां दुर्गाक आ महिषासुरक आकृति सभ सेहो बनल अछि ।छाग बलि हेतु महिषा सेहो बनल अछि जतय भक्तगण माता के छाग बलि द अराधना करै छथि । मिथिलाक शक्ति पूजा परंपराक जीवंत आस्था स्थल थिक इ स्थान । घंटो बैसब मोन नहि अघायत । बड़ शांति आ सुकून भेटैत छै गाछक छाया मे बनाओल चबूतरा सब पर बैसि क समय बितेबा मे । कने आबि क देखियौ ।
जय मां वन देवी दुर्गा।

साभार : Rewati Raman Jha

रविवार, 13 मई 2018

मिथिला में कियैक एतैक महत्वपूर्ण छैक कोहबर

कोबर कहियौ आ कि कोहबर ( Kohbar Ghar ), कोनो मैथिल के एकर बिना बियाह नहि होयत छनि l ..बूढ़-पुरान लोक सब स जे सुनल से अहाँ लोकनि स साझा कय रहल छी…एकटा आग्रह जे आर किछु जानकारी होय त अपने सब जोड़ी ,स्वागत अछि ..

कोहबर घर — मिथिला संस्कृति में कोहबर घर व मंगल घर जे कहिऔ एकटा एहेन घर मानल जाइत अछि जाहि में देवता- पितर बियाहल जोड़ा के आशीर्वाद दैत छथिन l मिथिला में बर- कनियाक मधुर मिलन लेल जे घर सजाओल जाइत अछि तेकर नाम कोबर घर राखल गेल अछि l बर- कनिया बियाहक बाद चारि पांच दिन अपन बेसी समय एही में गुजारथि ई विचार ध्यान में राइख क एकरा एक महीना पहिने स स्त्री लोकनि द्वारा चित्रित कय सजाओल जाइत अछि l कोबर घर के चारु कोण पर एक समान आकृति नैना जोगिनक चित्र आ एक कोन में पूजा स्थल पर कोबरक चित्र होइत अछि l बियाहक विध कोहबर घर स शुरू भय क कोहबर में समाप्त होइत अछि l विधकरी ओ स्त्री भेलीह जे कन्या स विवाहक विध करबैत छथिन l हाथी ,जनक डाला [गोबर आ माटी स बनाओल मूर्ति शिल्प ] , पुरहर , पातील {दू टा बर्तन ]जाहि में दीप जराओल जाइत छै l गौरीपूजन स्थल पर चतुर्थी दिन सिन्दूरदानक बादे विवाह सम्पूर्ण मानल जाइत अछि l …प्रिय पाहून यौ अहि ठाम विवाहू कोबर बांस ….

कोहबर चित्र —– अपने सब क्यों जनैत होयब जे जहिया कोनो भाषा विकसित नहि भेल छल तहिये स इ चित्र भाषा अछि l संम्पूर्ण मिथिला में शिव शक्ति के उपासना कैल जाइत अछि आ एतुका समाज आ कला संस्कृति पर तांत्रिक प्रभाव सेहो देखल जा सकैत अछि l तैं शायद योनियुक्त शिवलिंगक पूजन पूरा हिन्दू धर्म में संम्पूर्ण मिथिला में महत्वपूर्ण अछि l बर कनिया मिलन लेल कोहबर चित्र में चित्र भाषा प्रयोग कैल गेल अछि कियैक त प्रेमलीला काल में मौन भाषाक प्रयोग बेसी असरकारक मानल गेल अछि l

एकर मूल विषय — वंश बृद्धि ,प्रेम सुख आ समृद्धि l.. जहाँ सुमति तहँ संपत्ति नाना ,जहाँ कुमति तँह विपत्ति विधान … कोनो परिवारक समृद्धिक लेल सुखी दाम्पत्य जीवन जरुरी अछि l सुखी दाम्पत्य माने विचारक मेल, जेकरा लेल दुनू गोटा के तन मिले अर्थात शारीरिक मिलन जरुरी मानल गेल अछि l वेद- पुराणक वर्णनक अनुसार देवी –देवता में सब स सुखी दंपत्ति शिव आ पार्वती मानल गेल छथि , हुनकर आशीर्वाद जरुरी अछि l तैं एहि कोबर में मुख्य रूप स शिव पार्वती के चित्रण कैल जाइत अछि l
संरचना में प्रतीक भाषा — पूरा चित्र में सब आकृति मिलि कय प्रेम आ समृद्धिक सामूहिक प्रभाव उत्पन्न करैत अछि जेना— पुरइन, बांस आ केरा के एकटा गुण अय ओकर वृद्धि आ पसरनाई ताहि ल क ई वंश वृद्धि आ दीर्घायु के प्रतीक अय । जबकि माछ सन्तानोत्पत्ती या फर्टिलिटी के द्योतक अय । सुग्गा प्रेमक आ कछुवा (सब स अधिक साल तक जीबअ वला जीव 80 वर्ष ) दीर्घायु के संकेत अय । पुरइन स्त्री योनिक प्रतीक तहिना पितृसत्ता के प्रतीक पुरुष लिंग बांसक रूप में अछि,माछ ,चिरई आ सांपक जोड़ा वंश बृद्धिक लेल चित्रित कैल जाइत l”वंश” आ “बांस दुनू सुनबा में एक्कै सनक लगैत छैक ई वंश बृद्धिक लेल पुरुष लिंगक प्रतीक थीक ताहि पर प्रेमकरैत सुग्गा अछि l सूर्य और चंद्र देवता गवाहक रूप में बर कनियाक विवाह देखैत छथि आ अपन आशीर्वाद दैत छथिन । नौ ग्रह के चित्रण सेहो कैल जाइत अछि । एकटा गौरी पूजनक दृश्य सेहो चित्रित होयत अछि कियैक त हिनके कृपा स बर भेटलनि l केरा गाछ ,कछुआ, भौंरा, लटपटिया सुग्गा ,बांस पर बैसल चिरई ,मोरक जोड़ी सुग्गाक चोंच में एकटा पत्ता रहैत छै l नैना जोगिनक चित्र तेकर उद्देश्य अछि जे बरक प्रेम के ऊपर तांत्रिक नियंत्रण बनल रहय । विवाह में अग्नि देवता त साक्षाते मौजूद रहैत छथि। कनियाक आगमन कोनो परिवारक संतानोत्पति लेल पितृसत्ताक सुखद भविष्यक आशा जगबैत अछि l कोहबर घर में सब चित्र बर कनियाक हित में चित्रित होयत अछि l हुनका दुनू गोटे के बीच प्रेम बढ़े आ संतानक संयोग बने l कोबर में प्रतीक रुपे जीव-जंतु के चित्रणक संख्या भिन्न भिन्न होइत अय । कायस्थ लोक में बेसी आ ब्राह्मण में कम होइत अय ।
कोहबर:-मिथिला आ सम्पूर्ण मैथिली समाज में विवाहक मंडप केर संग-संग कोहबर के सेहो बड़ पैघ महत्व होइत छैक। कोहबरे ओ स्थान होइत अछि जाहि ठाम विवाहक राति ब'र के द्वार लगबा सँ पहिने तक कनियाँ गौरीक पूजा करैत छथि। गणेश जी केर चित्रकारी सँ शुरु भs भाँति-भाँतिक लत्ती-फत्ती सँ सजाओल जाइत कोहबर जतेक सुन्नर लागैछ ओतबे गूढ़ अर्थ सेहो रखैत अछि। भगवान गणेश विघ्नहर्ता मानल जाइत छथि ताहि कारणे हिनकर चित्र कोहबरक बीच में बनाउल जाइत अछि। तकरा बाद बांसक झुरमुट बनाओल जाइछ। बांस बहुत जल्दी बढ़ैत अछि आ एकर मूल जल्दी नष्ट नहि होइछ। एकरा आधार मानि नवदम्पत्ति के सुखद वंश वृद्धिक कामना कयल जाइत अछि। बांसक बाद कमल के फूल आ कमलक पात सेहो बनाओल जाइत अछि। कमल कादो मs फुलएलाक पश्चातो बड़ सुन्नर होइछ। एकर पत्ता पर पानिक एक बूंन तक नै रुकैत छैक। एहि फूलक विशेषता के आधार पर नवदम्पत्ति के सुखद जीवनक कामना कएल जाइत अछि। जिनगीक उतार-चढ़ावक बीचहु ई कमलक समान दमकैत रहए ऐहेन कामना कएल जाइछ | कोहबर में मंगल कलशक सेहो अपन महत्वपूर्ण स्थान होइछ।
कोहबर में प्रथम प्रजापति मानल जाइत टिकली (तितली) सेहो अवश्य चित्रित कएल जाइत अछि। एकरा अलावा कतेको प्रकार के फूल आ चिड़ैयां सेहो बनाओल जाइत अछि। जे अपन-अपन विशेष महत्व राखइत अछि।
साभार : संजू दास 

मंगलवार, 8 मई 2018

जनेऊ पहिरबाक ७ टा फायदा, यज्ञोपवीत मन्त्र सहित

मिथिला सहित भारतीय संस्कृति मे यज्ञोपवीत यानी जनेऊ धारण करबाक परंपरा वैदिक काले सँ चलैत आबि रहला अछि। 'उपनयन'क गिनती सोलह संस्कार में होइत अछि। मुदा आजुक दौर में लोग जनेऊ पहिरै सँ बचय चाहैत छथि। नबका पीढ़ी के मोन में सवाल उठैत अछि जे आख‍िर एकरा पहिरै सँ फायदा की हैत ? 

जनेऊ केवल धार्मिक नजैरे सँ नै, बल्कि सेहतक लिहाज सँ सेहो बहुते फायदेमंद अछि। 

१. जीवाणु आ कीटाणु सँ बचाव
जे लोग जनेऊ पहिरैत छथि और अहिसं जुड़ल नियमक पालन करैत छथि, ओ मल-मूत्र त्याग करैत काल अपन मुंह बंद राखैत छथि। एकर आदत पैड़ गेलाक बाद लोग बड़ आसानी सँ गंदा स्थान पर पैल जाय बला जीवाणु आ कीटाणुक प्रकोप सँ बैच जाइत छथि।

२. तन निर्मल, मन निर्मल
जनेऊ के कानक ऊपर कैस के लपेटबाक नियम अछि। एना केला सँ कानक पास सँ गुजरै बला ओहि नस पर सेहो दबाव पडैत छैक, जाहिक संबंध सीधे आंत सँ अछि। अहि नसपर दबाव पड़ला सँ कब्जक श‍िकायत नै होइत अछि। पेट साफ भेला पर शरीर और मोन, दुनु सेहतमंद रहैत अछि।

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३. बल आ तेज मे बढ़ोतरी
दायां कान लग सँ ओ नस सेहो गुजरती छैक, जेकर संबंध अंडकोष और गुप्तेंद्रियां सँ होइत छैक। मूत्र त्याग के वक्त दायां कान पर जनेऊ लपेटला सँ ओ नस दैब जाइत छैक, जाहिसँ वीर्य निकलैत छैक। एना में जानल-अनजानल शुक्राणु के रक्षा होइत छैक। अहिसँ इंसानक बल और तेज में वृद्ध‍ि होइत छैक।

४. हृदय रोग आ ब्लडप्रेशर सँ बचाव
रिसर्च में मेडिकल साइंस सेहो पेलक जे जनेऊ पहिरै बला के हृदय रोग और ब्लडप्रेशरक आशंका अन्य लोगक मुकाबला कम होइत छैक। जनेऊ शरीर मे खूनक प्रवाह के सेहो कंट्रोल करबा में मददगार होइत छैक।

५. स्मरण शक्ति‍ मे इजाफा
कान पर सब दिन जनेऊ राखय और कसय सँ स्मरण शक्त‍ि में सेहो इजाफा होइत छैक। कान पर दबाव पड़ला सँ दिमागक ओ नस एक्ट‍िव भ जाइत छैक, जेकर संबंध स्मरण शक्त‍ि सँ होइत छैक। दरअसल, गलति केला पर बच्चाक कान ऐंठबाक पाछु यैह मूल मकसद होइत छैक।

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६. मानसिक बल मे बढ़ोतरी
यज्ञोपवीतक कारण मानसिक बल सेहो भेटय छैक। इ लोग के सदिखन खराब काज सँ बचैय के याद रहैत अछि। संगेह एहन मान्यता छैक जे जनेऊ पहिरै बला के पास खराब आत्मा नै आबैत छैक। अहिमे सच्चाई चाहे जे भी होय, मुदा केवल मोन में एकर गहरा विश्वास होय भैर सँ फायदा त होइत अछि।

७. आध्यात्म‍िक ऊर्जाक प्राप्त‍ि
जनेऊ धारण केला सँ आध्यात्म‍िक ऊर्जा सेहो भेटय अछि। एहन मान्यता छैक जे यज्ञोपवीत में प्रभु केर वास होइत छनि, इ हमरा कर्तव्य के सेहो याद दैत अछि।