गुरुवार, 2 मई 2024

नाग नागिन आ विद्वान ब्राह्मण : बरसाइत पावनिक कथा - Vat Savitri Katha in Maithili

गौरी गणपति ध्यान करि ,सिर वर पत्रक पाग |
कथा सुनय जे प्रेम सँ, बाढय भाग सोहाग ||”
मिथिलाक कोनो गाम मे एकटा विद्वान ब्राह्मण छलाह । हुनक परिवार मे पत्नी ,आ सात टा बालक छलन्हि ।ब्राह्मण अपन विद्वता आ पुरोहितिक बलेँ सुख पूर्वक जीवन ब्यतीत करैत छलाह । एक दिन ब्राह्मणी भानस करबा काल भात रान्हि माँर पसेवाक वर्त्तन केर अभाव मे चुल्हिक पाछू मे एकटा बिहरि मे माँर पसा देलनि । ओहि बिहरि मे एकटा नाग नागिन केर बास छल जकर सात गोट अंडा तप्पत माँरक प्रभाव सँ नष्ट भए गेलैक । ओ नागिन कुपित भय प्रतिज्ञा कएलि जे जहिना ई ब्राह्मणी हमर सात गोट भावी संतान केँ मारि देल अछि तहिना हम आ नाग मिलि एकरो सातो टा बेटा केँ शुभ दिन ताकि ताकि केँ डसि केँ मारि देब । ई निश्चय कए नाग नागिन ब्राह्मणक घरक आबास त्यागि गामक बाहर एक गोट वरक गाछक जड़िक बीहरि मे चल गेल । 
ब्राह्मणक प्रथम पुत्र जखन विवाहक बाद दुरागमन कए कनियाँ सहित गाम वापस अबैत छलाह तँ ओहि गाछक तर अबिते ब्राह्मणकुमार केँ नाग डसि लेलक आ ओ ठामहि प्राण त्यागि देल । एबं प्रकारेँ एहने दुर्घटना ब्राह्मणक पांचो और बेटाक संग विवाहक उपरान्ते घटित भेल । आब ब्राह्मण केँ मात्र एकटा कुमार पुत्र बचि गेलन्हि । ब्राह्मण सोचल जे हमर छओ पुत्रक मृत्यु विवाहक उपरान्ते भेल अछि तदर्थ एहि पुत्रक विवाहे नहि कराएब । ब्राह्मणक छोट पुत्रक विवाह लेल अनेक घटक आ कन्यागत अएलाह मुदा ब्राह्मण देवता अपन प्रतिज्ञा पर अटल रहलाह । एम्हर आबि ब्राह्मण केँ दरीद्राक अभिशाप सेहो ब्याप्त भय गेल । घर मे साँझक सांझ उपास होमय लागल । ब्राह्मण अपने रोगी आ अकर्मण्य भए गेलाह । तदर्थ शिक्षा आ पुरिहिती कर्म सँ आय समाप्त भय गेल । ब्राह्मण कुमार पिताक पग चिन्ह पर चलबाक अथक प्रयास कएल मुदा ओ एहि कार्य मे जमि नहि सकलाह । एहना स्थिति मे ब्राह्मण पुत्र कतहु जाए अर्थ कमाय माए बापक पोषण करबाक दृढ निश्चय कऽ गाम सँ कोनो नगरक हेतु प्रस्थान कएल ।

इहो पढ़ब :-

नगरक यात्रा क्रम मे ओ एक गामक बाटेँ चल; जाइत छलाह कि ओहि गामक एक झुण्ड कुमारि कन्या कोनो आन गामक प्रसिद्द मंदिर मे पूजा करबाक निमित्त हिनक पाछू पाछू चलय लागलि । ब्राह्मण कुमार अपन जूता केँ हाथ मे नेने छलाह आ अत्यंत तीख रौद रहितहुँ अपन छाता केँ मोड़ि कांख तर दबने छलाह । हुनक एहन उटपटांग कार्य देखि कुमारि कन्याक झुण्ड सँ एकटा कन्या हँसइत अपन संगी सहेली सँ कहलि जे देखैत जाह हे ,दाय सभ आगू आगू जाइत एहि ब्राह्मण कुमारक तमाशा । तीख रौद रहितहुँ ई मुर्ख छाता केँ कांख मे दबने अछि आ जूत्ता केँ पैर मे नहि पहिरि हाथ मे टँगने अछि । सखीक ब्यंग्य सूनि ओहि मे सँ एकटा सुदर्शना आ बुधियारि बाजलि - जे नहि है, ई ब्राह्मण कुमार परम चतुर अछि । एखन बाट साफ़ आ काँट कुश रहित अछि तदर्थ ई अपन जूताक ब्यबहार नहि कए ओकर घसाएब आ टूटब सँ रक्षा कए रहल अछि आ छाता एहि लेल कांख तर दबने अछि जे एहि रौद में चड़ै- चुनमुनी आदिक कोनो शंका नहि जे वस्त्रादि वा देह पर बीट कऽ अपवित्र कए देत । कनेक काल बाद एकटा नाला आएल तँ ब्राह्मणपुत्र चट जूता पहिर नाला मे प्रवेश कए गेलाह से देखि पूर्वक सखी फेर हँसि कहल जे तोँ एकरा बुधियार कहलह ? मुदा ई तँ जूता केँ पैन में पहिर नष्ट करबाक पर तुलल अछि । ताहि पर दोसर सखी बाजलि नहि है ,बहिना ! एहू कार्य में एकर बुधियारिये अछि जूता शरीरक रक्षा हेतु अछि। कहीँ जलक नीचाँ केर कंकर पाथर आदि पैर में गरए नहि तेँ ई जूता पहिरलेल अछि।

इहो पढ़ब :-

किछु कालक उपरान्त ब्राह्मण कुमार एकटा वृक्षक छाया मे सुस्तेबाक हेतु बैसलाह तँ छाया मेअपन छाता तानि लेल से हुनक उनटा ब्यापार देखि प्रथम कुमारी फेर हँसि देलक तँ ओकर सुदर्शना सखी कहलि जे देखह सखी ,एहि गाछक शाखा पर अनेक चिड़ै चुनमुन्नी सभ बैसल अछि जे अचानक बीट कऽ वस्त्र आ देह ने घिनाए दिअए तदर्थ ई छाता तनने छथि । ब्राह्मण कुमार एहि सुदर्शना आ परम चतुरा कन्याक सभ बात सुनैत छलाह आ हिनक बुद्धि आ रूप सँ मोहित भए हिनका सँ विवाह करबाक निश्चय कऽ हिनक पिता सँ अपन परिचय दैत कन्या सँ विवाह करबाक प्रस्ताव राखल । कन्याक पिता प्रस्ताव सहर्ष स्वीकार कए अपन कन्याक विवाह हिनका सँ कराए देल।
विवाहक पाँचमे दिन कन्या केँ वरक संग बहुत रास धन आ जैतुक संग विदा कए देल । ब्राह्मण कुमारक गाम ओहि ठाम सँ तीन दिनक रास्ता छल आ ओही दिन वत सावित्री पर्व सेहो छल तदर्थ ओ कन्या अपन माए सँ कहि बरिसाइत पूजाक सभ सामिग्री सेहो लय लेलनि जे बाटहि मे कोनो गाछ तर बैसि पावनि कए लेब । संयोग एहन जे ओ लोकनि अबैत अबैत ओही वृक्षक निकट पावनि करबालय रुकलीह जतय नाग नागिन केर निवास छल । नाग नागिन ब्राह्मण कुमार आ हुनक पत्नी केँ देखि प्रसन्न भय उठल जे जे हमरा सभक प्रतिज्ञाक पूर्ति अनायासे भऽ गेल । एम्हर ब्राह्मण कुमारक नवौढा पत्नी ओहि गाछ तर पूजा कर्बाक निमित्त सामिग्री सभ पसारए लगलीह तँ चट दय नाग अत्यंत लघु रूप धारण कए पूजाक सामिग्री मे सँ खिरोधिनी मे प्रवेश कए गेल जे अवसर अएने कुमार केँ डसि लेब । नागक ई कार्य कुमारक पत्नी देखि रहल छलीह । शीघ्रता सँ ओ खिरोधिनी जे जे माँटिक लोटा आकारक पात्र होइत अछि तकरा एकटा सरवा सँ झाँपि अपन जांघ तर मे दावि पूजा करए लगलीह । एहि प्रकारेँ नागक प्राण संकट मे देखि नागिन भयातुर भए ब्राह्मणी सँ हाथ जोड़ि कातर स्वर मे अपन वर माँगल । नागिन केर आतुरता निरखि ओ कन्या बाजलि – “जे तोँ हमर मर दे आ अपन वर ले।” तखन ओ नागिन ब्राह्मणक मुइल छओ भाय केँजीवित कए देलक । तखन ओ कन्या सेहो नाग केँ छोड़ि देल आ सातो भाय एक संगे घर विदा भेलाह । ब्राह्मण कुमार सातो भाए घर पहुँचलाह आ हुनक माए सभ केँ परिछि हुलसि केँ घर आनल ।

एहि कथाक समाप्ति पर पूजा लग बैसलि सभ स्त्री अपन अपन माथ पर सँ जे वरक पात नेने छलीह तकरा उतारि ओहि केँ खोंटि खोंटि मर दे कहि आगू मे आ वर ले कहि पाछू मे फेकय लगलीह । पूजाक विसर्जन भेला पर अइहव ,कुमारि भोजन कराओल गेल ।

1 टिप्पणी:

अपन रचनात्मक सुझाव निक या बेजाय जरुर लिखू !