हम झेलम नहायब,
हम सतलजो नहायब
हम गंगो मे नहायब
हम त्रिवेणीयो नहायब
मुदा मिथिले के जल सँ भरब गगरी
हम छी सीता हमर ई जनक नगरी
किरण उगलो नै हेत हम कातिक नहायब
माघ मासो नहायब बैसाखो नहायब
अकासे मे आइ अपन नुआ सुखायब
हम छी सीता हमर ई जनक नगरी
एकर कण-कण मे बास करय सपना हजार
एकर सुरभित बयार एकर हरियर दयार
अकासे मे आइ हम दीप जरायब
हम एकर लाज आ ई हमर चुनरी
हम छी सीता हमर ई जनक नगरी
अपन ज्ञानो बढायाब विज्ञानों बढाएब
अपना मिथिला के नया नया रंग मे सजाएब
उच गगनक घटा हम ओकर बिजुरी
हम छी सीता हमर ई जनक नगरी
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