देखहुँ हो शिवशंकर योगी, अति विचित्र विरागी
अंग भस्म सिर गंग सम्हारे, भाल चन्द्र विराजी
बूढ़ बरद पर करथि सवारी, भाङ-घथूर अहारी
कटि कोपीन पहिरि हर घूमथि, उपर बघम्बर धारी
अर्धअंग श्री गौरी राजे, देखितहिं मन भ्रमकारी
कार्तिक-गणपति दुइ जन बालक, तिनकहुँ गतिअति न्यारी
मोर-मूस चढ़ि ईहो दुहु घूमथि, घरके सुरति बिसारी
कहथि महारूद्र, भजहुँ एहि शिवकेँ, इहो छथि त्रिभुवन हितकारी
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