गुरुवार, 10 दिसंबर 2020

वैद्यनाथ मिश्र यात्री ( नागार्जुन ) - Vaidyanath Mishra Nagarjun

स्व. श्री वैद्यनाथ मिश्र “यात्री” केर जन्म १९११ ई. मे अपन मामागाम सतलखामे भेलन्हि, जे हुनकर गाम तरौनीक समीपहिमे अछि। यात्री जी अपन गामक संस्कृत पाठशालामे पढ़ए लगलाह, फेर ओऽ पढ़बाक लेल वाराणसी आऽ कलकत्ता सेहो गेलाह आऽ संस्कृतमे “साहित्य आचार्य” केर उपाधि प्राप्त कएलन्हि। तकर बाद ओऽ कोलम्बो लग कलनिआ स्थान गेलाह पाली आऽ बुद्ध धर्मक अध्ययनक लेल। ओतए ओऽ बुद्धधर्ममे दीक्षित भए गेलाह आऽ हुनकर नाम पड़लन्हि नागार्जुन। 

यात्रीजी मार्क्सवादसँ प्रभावित छलाह। १९२९ ई. क अन्तिम मासमे मैथिली भाषामे पद्य लिखब शुरू कएलन्हि यात्री जी। १९३५ ई.सँ हिन्दीमे सेहो लिखए लगलाह। स्वामी सहजानन्द सरस्वती आऽ राहुल सांकृत्यायनक संग ओऽ किसान आन्दोलनमे संलग्न रहलाह आऽ १९३९ सँ १९४१ धरि एहि क्रममे विभिन्न जेलक यात्रा कएलन्हि। हुनकर बहुत रास रचना जे महात्मा गाँधीक मृत्युक बाद लिखल गेल छल, प्रतिबन्धित कए देल गेल।



भारत-चीन युद्धमे कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा चीनकेँ देल समर्थनक बाद यात्रीजीक मतभेद कम्युनिस्ट पार्टीसँ भए गेलन्हि। जे.पी. अन्न्दोलनमे भाग लेबाक कारण आपात्कालमे हिनका जेलमे ठूसि देल गेल। यात्रीजी हिन्दीमे बाल साहित्य सेहो लिखलन्हि। हिन्दी आऽ मैथिलीक अतिरिक्त बांग्ला आऽ संस्कृतमे सेहो हिनकर लेखन आएल। 

प्रगतिशील चेतना के मूर्धन्य कवि, नागार्जुन अपन धारदार राजनीतिक चेतना के लेल सेहो जानल जाइत छलैथ। मैथिल काव्य-संग्रह ‘पत्रहीन नग्न गाद्य’ के लेल दोसर साहित्य अकादमी पुरस्कार १९६९ ई.  भेटलन्हि। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान सेहो हिनका पुरस्कृत केलैथ। ‘रतिनाथ की चाची’, ‘बाबा बटेसरनाथ’, ‘दुखमोचन’, ‘बलचनामा’, ‘वरुण के बेटे’ और ‘नयी पौध’ हिनकर प्रमुख उपन्यास छनि त ‘युगधारा’, ‘सतरंगे पंखों वाली’, ‘प्यारी पथराई आंखें’, ‘तालाब की मछलियां’, ‘चन्दना’, ‘खिचड़ी विप्लव देखा हमने’, ‘तुमने कहा था’, ‘पुरानी जूतियों का कोरस’ आ ‘हजार-हजार बांहों वाली’ आपके काल के भाल पर दर्ज काव्य-संग्रह अछि त ‘भस्मांकुर’ नाम सं हिनकर एकटा खंडकाव्य सेहो उपलब्ध अछि। १९९४ ई.मे हिनका साहित्य अकादमीक फेलो नियुक्त कएल गेलनी। 

यात्रीजी जखन २० वर्षक छलाह तखन १२ वर्षक कान्यासँ हिनकर विवाह भेलनी। हिनकर पिता गोकुल मिश्र अपन समाजमे अशिक्षितक गिनतीमे छलाह, मुदा चरित्रहीन छलाह। यात्रीजीक बच्चाक स्मृति छन्हि, जे हुनकर पिता कोना हुनकर अस्वस्थ आऽ ओछाओन धेने मायपर कुरहड़ि लए मारबाक लेल उठल छलाह, जखन ओऽ बेचारी हुनकासँ अपन चरित्रहीनता छोड़बाक गुहारि कए रहल छलीह। यात्रीजी मात्र छ वर्षक छलाह जखन हुनकर माए हुनका छोड़ि प्रयाण कए गेलीह। यात्रीजीकेँ अपन पिताक ओऽ चित्र सेहो रहि-रहि सतबैत रहलन्हि जाहिमे हुनकासँ मातृवत प्रेम करएबाली हुनकर विधवा काकीक, हुनकर पिताक अवैध सन्तानक गर्भपातमे, लगभग मृत्यु भए गेल छलन्हि। के एहन पाठक होएत जे यात्रीजीक हिन्दीमे लिखल “रतिनाथ की चाची” पढ़बाक काल बेर-बेर नहि कानल होएताह। पिता-पुत्रक ई घमासान एहन बढ़ल जे पुत्र अपन बाल-पत्नीकेँ पिता लग छोड़ि वाराणसी प्रयाण कए गेलाह।

डॉ. नामवर सिंह ने ‘नागार्जुन प्रतिनिधि कविताएं’ शीर्षक सं एकटा चयन संपादित केने छथि जाहिमे 79 हिन्दी के आ 12 मैथिली के कविता संकलित अछि।

‘मन्त्र कविता’ एकटा अद‍्भुत कलात्मक प्रयोग अछि जे सन‍् 1969 के मन:स्थिति के दस्तावेज बनी सामने आयल अछि। ‘भुस का पुतला’, ‘प्रेत का बयान’, ‘बाकी बच गया अण्डा’, ‘अकाल आ ओकरा  बाद’, ‘कर दो वमन’ और ‘डियर तोताराम’ नागार्जुन के किछ एहन विशिष्ट कविता अछि जे जहिके प्रासंगिकता आयो जस के तस अछि।

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