एकटा एहन कला जेकरा वैश्विक पटल पर महिआ सब पहुंचेलक। इ एकटा एहन लोक कला अछि, जेकर संवर्धन आ संरक्षण मे महिलाक हाथ अछि। हम बात क रहल छि मिथिला चित्रकला के। एकरा मिथिला पेंटिंग कहल जाइत अछि। मानल जाइछ इ चित्र राजा जनक जी राम-सीता के विवाहक समय महिला कलाकार सं बनबेने छलैथ। मिथिला क्षेत्रक कतेको गामक महिला अहि कला मे दक्ष अछि। अपन असली रूप मे त इ पेंटिंग गामक माट्टी सं नीपल गेल भीत मे देखबाक भेटय छल, मुदा एकरा आब कपड़ा या फेर कागजक कैनवास पर खूब बनायल जाइत अछि।
आय पूरा दुनिया मे एकर डंका बाएज रहल अछि। देशे नै, दुनिया के विकसित राष्ट्र मिथिला पेंटिंग के विशिष्टता पर मोहित अछि। स्वंय देशक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जहम चीन दौरे पर जा रहल छलैथ, त हुनकर कन्हा पर जे शॉल राखल छलैन, मिथिला पेंटिंग ओकर सुंदरता मे चाइर चांद लगा रहल छल।भारतक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मिथिला पेटिंग सं अतेक लगाव इ बतेबाक लेल बेसी अछि जे इ पूरा दुनिया मे प्रसिद्ध भ रहल अछि।
मिथिलाक पहचान एतय के मेधा अछि। मिथिलाक मधुरता अछि। मिथिलाक संस्कृति आ पेंटिंग अछि। मधुबनी जिला मुख्यालय सं दस किलोमीटर दूर रहिका प्रखंडक नाजिरपुर पंचायतक एगो गांव अछि जितवारपुर। करीब 670 परिवार के अपन आँचर मे समेटने एहि गामक इतिहास गौरवशाली अछि। एकर सबसं बड़का कारण इ ऐछ जे एहि गामक तीनटा शिल्पि के पद्मश्री सं सम्मानित कैल जा चुकल अछि। साइठ वर्ष सं मिथिला पेंटिंग सं जुड़ल बौआ देवी के 2017 मे पद्म पुरस्कार भेटलनि। बौआ देवी के 1985-86 मे नेशनल अवॉर्ड भेट चुकल छनि। एहिसं पहिले जगदम्बा देवी आ सीता देवी के इ सम्मान भेट चुक अछि। पूरा जितवारपुर गामे मिथिला पेंटिंग आ गोदना पेंटिंग विधा मे पारंगत अछि। लगभग छह सौ सं बेसी लोग एहि कला सं जुरि क देश-विदेश मे अपन नाम रोशन क चुकल अछि।
मिथिला देशक उत्तर मे हिमालय द्वारा घिरल अछि, गंगा दक्षिण मे कोसी, पूर्व, पर आ गंडक पश्चिम मे अछि। मधुबनी, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, चंपारण, सहरसा, पूर्णिया, मुंगेर, भागलपुर, सीतामढ़ी, समस्तीपुर, सुपौल, बेगूसराय जिला के मिथिलाक नाम सं जानल जाइत अछि। नेपालक तराई जिला आ हिमालय के निचला पर्वतमाला के कतेको भाग मे मैथिलि भाषाक प्रयोग कैल जाइत अछि। प्रारम्भ मे रंगोली के रुप मे रहलाक उपरांत इ कला धीरे-धीरे आधुनिक रूप मे कपड़ा, दीवार आ कागज पर उतैर आयल अछि। मिथिलाक औरत द्वारा शुरू कैल गेल एहि घरेलू चित्रकला के पुरुषो अपना लेलक अछि।
कला शैली के विकास 17वीं शताब्दीक आसपास मानल जाइत अछि। इ शैली मुख्य रूप सं जितवारपुर आ रतन गांव मे विकसित भेल। बहुते पहिले सं मिथिलाक स्त्रीगण अपन घर, दरबज्जा पर चित्र उकेरैत रहली हन जाहिमे एकटा सगरो संसार रचल जाइत रहल अछि। कोहबर, दशावतार, अरिपन, बांसपर्री आ अष्टदल कमल वियाहक अवसर पर घर मे बनाओल जाइत रहल अछि। चित्र मे मूल्यरूप पर कुल देवता के सेहो चित्रण होइत अछि। हिन्दू देवी-देवताक तस्वीर, प्राकृतिक नजारा जेना- सूर्य आ चंद्रमा, धार्मिक गाछ-वृक्ष जेना- तुलसी आ बियाहक दृश्य देखबाक भेटत।
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