शनिवार, 29 जून 2019

सिरहब/नगहर भरबा काल के गीत - मैथिली लोकगीत

चारि सखि मिलि - Maithili Lokgeet

चारि सखि मिलि पनियां के गेलिअइ
ओही रे जमुना के तीरे सखी
जलबा भरिइते रामा गगरी फुटिय गेल
गगरी तऽ भेल सकचूने सखी
सुनू सखि अगिली सुनू सखी पछिली
सुनू सखि बिचली समाद सखी
कहबनि ससुरजी के कहती समझयति
बुझाय मोहे देती बात सखी
एतबा वचन जब सुनली ननदी
भइया आगू चुगली लगाबे सखी
तोहरो के धनि भइया विरह के मातलि
गगरी तऽ भेल सकचूने सखी
जयबा काल गगरी फुटिय गेल
धनी केर कौने अपराध सखी
हरबा जोतैये काल फरबा हे टुटि गेल
बीजुवन टूटल कोदारि सखी

दस पाँच सखी मिलि - Maithili Lokgeet

दस पाँच सखी मिलि पनियां के गेलहुँ
ओहि रे जमुना किनार हे
आहे एक सखी केर गागर फुटि गेल
सब सखी रहली लजाइ हे
छोटकी ननदिया राम बड़ तिलबिखनी
दौड़ि खबरि भइया के पहुँचाइ हे
तोहरो के तिरिया भइया भंगबा के मातलि
गागर कयल सकचुर हे
हर जोतऽ गेलिऐ बहिनी फार जे टुटि गेल
बिजुवन टुटल कोदारि हे
पानि भरे गेलै गे बहिना गागर फुटि गेलै
तिरिया के कओने अपराध हे
बरदा के आंकुश हो भइया दुइ रे पैनमा
घोड़बाक आंकुश लगाम हे
हथिया के आंकुश हो भइया
दुइ रे हौदबा हे
तिरिया के आंकुश सारी-राति हे

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अपन रचनात्मक सुझाव निक या बेजाय जरुर लिखू !