हिमालय एलखिन आ मैना क कहलखिन - कि किया एना बताहि जेकाँ कैरत छी, त्रिलोकिनाथ स्वंग द्वार पर आयल छैथ आ अहाँ जिद केने बैसल छी, मुदा मैना कहलखिन - गौर क पाथरि में बानहि पोखैर में डूबा देवई मुदा ओकर विवाह महादेव सं नहि करब। विष्णु सेहो मनेलखिन मुदा मैना अपना बात धेने बैसल रहलि। तखन नारद महदेव क कहलखिन जे - हे भोले नाथ आब अपन भाभट समटू आ अपन स्वरुप सुन्दर कय गौरी के देल वरदान के पूरा करु। भोलेनाथ अपन रूप बदलि देल, तखन नारद मैना क कहलखिन कि आब कोप भवन सं निकलू आ महादेव क देखू ओ केहन छैथ। आ जखन मैना महादेव दिस घूरी क देखलखिन त देखते रही गेलि। सूर्य सं चमकैत सुन्दर आँखि , मोतीक माणिक गहना, सूर्य हुनका छत्र ओढौने, चंद्रमा चामदार डोलबैत, गंगा यमुना पाछू चामर धएने .ब्रह्मा, विष्णु इन्द्र आ ॠषि हुनकर जय जयकार करैत , गंधर्व अप्सरा गीत आ नृत्य करैत, मैना चकित रहि गेलि आ मोने मोन प्रस्सन भेलि आ अपना भाभट पर पछतै लागलिह। गौरी क विवाह महादेव बर-बरियाती संगे हिमालय क द्वार पर पहुँचला, मैना हुनकर सभ हक परिछन केलखिन स्त्रिगण सब गीत गबैत मैना क संग देलखिन I सब लोग वर क रूप देखि काठपुतली जेकाँ ठाङ भ गेल। बर के मङवा पर आनल गेल।
हिमालय हुनका अहॅणा केलखिन। ओंठगर कुटल गेल।
महादेव कोहवर घर सं गौरी क हाथ पकङि अनलखिन। वर के रेशमी धोती, फूल तथा सोना क माला पाहिरायल गेल। वर कनियाँ के आम पल्लव केर कंगन पाहिरायल गेल। ॠषि सब गोत्रध्याय पढाओल। हिमालय कन्यादान केलखिन, शिव गौरी वेदी पर गेलाह। अग्नि क आव्वाहन कय हवन कएल गेल, आ विवाह बिधि-विधान सं संम्पन्न कएल गेल। सब लोक दुनू गोटा के आशीर्वाद देलखिन। गौरी-शंकर कुलदेवता क प्रणाम करि भोजन सं निवृत भय विश्राम करए गेला। तखन बरियाती सब के भोजन आ सत्कार कएल गेल। मैना अपन अज्ञातवाश लेल सब सं क्षमा मंगलैथ। त सब बरियाती सब कहलखिन कि - इ त त्रिलोकीनाथ क लीला छेलनि। अहाँ सब के सौभाग्य बढय। आब हमरालोकनिक जयवाक आज्ञा दिय। आगाँ - आँगा शिव-गौरी बसहां पर बरियाती सब संगे आ पाछू-पाछू हिमालय अपना परिवार संगे अरियातई लेल चलला ,किछु दूर बाद हिमालय लोकनि भारी मान सं बेटी क विदा क अपना घर घुरी आयलाह।
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