पृथ्वीक जन्म - पापसँ पृथ्वी पताल चलि गेलिह, तखन ब्रह्मा, विष्णु प्रार्थना कए हुनका उपर अनलन्हि, फेर ओऽ डगमगाइत छलीह, तखन विष्णु काछु बनि चलि गेलाह, अपन पीठ पड राखि लेलन्हि, तैयो ओऽ जल–पर भँसैत छलीह, तखन आगस्त्यक जाँघ तरसँ माटि आनल गेल, विष्णु सेहो माछ बनि माटि अनलन्हि, तकर जोडन दए पृथ्वीकेँ स्थिर कएल गेल, जे कमी छल से भगवान वराह बनि उत्तर माथसँ पृथ्वीकेँ ठोकि कए ठीक कए देलन्हि ।
समुन्द्र मन्थन - देवता–दानव सुमेरुपर एकत्र भए समुन्द्र मन्थनक हेतु बासुकीनागकेँ मन्दार पर्वतमे लटपटाए समुन्द्रमे उतारलक । कुकर्मराजकेँ आधार बनाए मूँह दिससँ दानव आ पुन्छी दिससँ देवता नागकेँ पकडि मन्दारक मथनीसँ मंथन शुरु कएलन्हि । रगरसँ पर्वतपर गाछ–वृक्षमे आगि लागि गेल । इन्द्र बर्षा कएलन्हि, समुन्द्रक नुनगर पानि दूध–घी भए गेल, लक्ष्मी, सुरा आऽ उच्चैःश्रवाघोडा निकलल से चन्द्रमा लोकनि लए लेलन्हि । अमृत लेने धन्वतरि बहार भेलाह , बिष निकलल से महादेव कण्ठमे लेलन्हि । गौरी बिसहरा, साँप, बिढनी, चुट्टीक मदतिसँ बिष महादेवक देहसँ निकललन्हि । अमृत लेल झगडा बझल, विष्णु मोहिनी बनि गेलाह । दैत्य मोहित भए अमृत–कलश हुनकर हाथमे राखि देलन्हि आऽ देवतासँ लडए लगलाह । विष्णु सभ देवताकेँ अमृत पिया देलन्हि । दैत्य राह भेष बदलि अमृत पीबए चाहलक मुदा चन्द्रमा सूर्य हुनका चिन्ह गेलखिन्ह, अमृत मुँहसँ कण्ठ धरि यावत जाइत तावत विष्णु ओकर गर्दने चक्रसँ काटि देलन्हि । मुदा अमृतक जे स्पर्श ओकरा भए गेल छल से ओऽ मरल नहि, मुण्ड भाग राहु आऽ शेष भाग केतु बनि गेल, एखनो कोनो अमावस्यामे सूर्यकेँ तँ कोनो पूर्णिमामे चन्द्रमाकेँ गीडैत अछि । मुदा कटल मुण्ड–धरक कारण दुनू गोटे किछु कालक बाद बहार भए जाइत छथि । बचल अमृत विश्वकर्माक रखवाडिमे इन्द्रकेँ दए देल गेल । बासुकी नागकेँ माइक श्राप नहि लगाबाक आऽ जनमेजयक यज्ञमे भागिन आस्तीक द्वारा सपरिवार प्राणरक्षा होएबाक बर भेटलन्हि ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
अपन रचनात्मक सुझाव निक या बेजाय जरुर लिखू !