जखन गौरी दाइ घर सँ भेली,
सखि दस रोदना पसार
ककर बदनि हम हेरइते हरब,
संग छथि सहोदर भाय
एक कोस गेली बेटी दुइ कोस गेली,
तेसर कोस चललो ने जाय
डोलिया उधारि जौं ताकथि गौरीदाइ,
छूटि गेल बाबा केर राज
घुरू भइया घूरि घर जइयौ,
आमा के कहबनि बुझाय
आमा जे कनती हमरो सुरति करि,
छने छन उठबै चेहाय
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
अपन रचनात्मक सुझाव निक या बेजाय जरुर लिखू !