मंगलवार, 19 मार्च 2019

सिनुरदान गीत लिरिक्स, मैथिली सिंदूरदान गीत लिरिक्स - Maithili Sindurdan Geet Lyrics

पाहुन सिन्दूर लियऽ हाथ - Lyrics

पाहुन सिन्दूर लियऽ हाथ सोन सुपारी के साथ
सीता उधारि लियऽ माथ सिन्दूर लेबऽ लए
बीति रहल अछि लग्न अहाँ धनुष कयलौं भंग
सब छथि आनन्दमग्न आशीष देबऽ लए
रघुवर शिर शोभनि मौर सीता सब दिन पुजथि गौर
आजु पूजल हमर और नृपति होबऽ लए

प्रिय पाहुन सिन्दूर दान करू - Maithili Lokgeet

प्रिय पाहुन सिन्दूर दान करू
एहि अवसर नहि लाज उचित थिक, 
एहन ने किछु मान करू
लियऽ सिन्दूर कर कमल मुदित चित सँ, 
हमर कथा किछु कान धरू
लग्न मुहुर्त सुमंगल एखन आब ने विलम्ब महान करू
मधुर स्वर छेडू तान सखि सभ मंगल गान करू
दामोदर विधि आजु मुदित चित वर कन्याक कल्याण करू

कओने नगर के सिनुरा - Maithili Lokgeet

कओने नगर के सिनुरा, सिनूरा बेसाहि एलौं यौ
बाबा कओने नगर जुआ खेलि एलौं, हमरो के हरि एलौं यौ
हाट बजार के सिन्दुरबा, सिन्दुर बेसाहि एलौं गे बेटी
अवधनगर जुआ खेलि एलौं, सीता बेटी हारि गेलौं हे
देसहिं देश हम पत्र देलौं, सब व्यर्थ केलौं हे
बेटी अपने सऽ आयल दुइ बालक, धनुषा के तोड़ि देलनि हे
हमर प्रतिज्ञा कठिन भारी, सेहो आब पूरि गेल हे
बेटी पूरि गेल हमरो मनोरथ, जुगलत जमाइ भेला हे

स्वर्ण सिनूर दुलहा धीरे सऽ - Maithili Lokgeet

स्वर्ण सिनूर दुलहा धीरे सऽ उठाउ हे दशरथ जी के बबुआ
धीरे धीरे लली के लगाउ हे दशरथ जी के बबुआ
लाज ने करू दुलहा हृदय के सम्हारू हे दशरथ जी के बबुआ
जल्दी सँ करू सिन्दूरदान हे दशरथ जी के बबुआ
कँपैत कर के करू स्थिर हे दशरथ जी के बबुआ
लली के हृदय लगाउ हे दशरथ जी के बबुआ

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शनिवार, 16 मार्च 2019

मखान के खीर विधि : Makhan kheer Recipe

सामग्री ( ४ लोगक लेल)
दूध १ लीटर
मखान १ कप
घी १ छोटाका चम्मच 
चिरौंजी १ छोटाका चम्मच, काजू १०-१२,
बादाम १०-१५, किशमिश १ बड़ाका चम्मच
हरीयरका इलायची २
चिन्नी (लगभग एक चौथाई सँ एक तिहाई चाय कऽ प्याला।)

बनाबै के विधि : काजू ऑउर बादाम के बारीक कैट लिअ। किशमिश के धोय के अलग राखु। हरीयर इलायची के बाहरी खोइँचा निकैल और दाना कऽ दरदरा कुइट लिअ।

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मखान के महीन-महीन कैट लिअ या फेर उखैर-समाठ या मिक्सी मे दरदरा पीस लिअ। एकटा कड़ाही मे घी गरम करु ऑउर ओय मे मखान के एक मिनटकऽ लेल भुजू। ओहीमें दूध डालु ऑउर मखान'क संगे निक जंका मिलाबु।

पहील बेरा उधियेला के बाद आँच के धीम कऽ दियो ऑउर मखान के दूध मे निक जंका सँ गैल के दूध मे मिल जेबाक तक पकाबु. एही प्रक्रिया मे लगभग ३० मिनट लागैत अछि। ५-७ मिनटकऽ अंतराल पर दूध के चलावैत रहु।

काटल गेल मेवा, किशमिश ऑउर चिन्नी के दूध मे निक जंका मिला कऽ एक मिनट ऑउर पकाबु, आँच के बंद कऽ दियो. कुटल गेल इलायची मिलाबु. खीर ठंडा भेला के बाद परोसु।

Tags : # Makhan # Makhana # vaingan # Recipe

शुक्रवार, 15 मार्च 2019

मिथिला चित्रकला और सुजनी कला के अंतरराष्ट्रीय पहचान भेटेलनि स्व० कर्पूरी देवी

फोटो : फोकार्टोपीडिया
जापान, अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी समेत दुनिया के विभिन्न देशक लोग बिहारक मिथिला पेंटिंग के पसंद क रहल अछि। भारत मे एखन भले ही  एकर म्यूजियम नै बनल होय मुदा जापान मे मिथिला पेंटिंग के म्यूजियम बनी चुकल अछि। फ्रांस होय या जर्मनी ओतय आर्ट गैलरी मे मिथिला पेंटिंग लागल रहैत अछि। मिथिलाक अहि कला के अंतरराष्ट्रीय फलक पर प्रसिद्धि भेटेबा मे कर्पूरी देवी केर महत्वपूर्ण योगदान छनि।
 
मिथिला पेंटिंग के क्षेत्र मे देश नै दुनिया भरी मे जानल पहचानल नाम अछि कर्पूरी देवी ( Karpuri Devi )। 90 सालक अवस्था में मधुबनी में हिनक देहांत (7/2019) भ गेलनि। बृद्ध अवस्था भेलाक उपरांतो हिनक उत्साह में कमी नै छलनी और स्वर्गवास भेला सं किछ दिन पहिले धरि अपन कला के सृजन क रहल छलथि। दुनियाभरी मे मिथिलाक कला के सांस्कृतिक दूत के रूप मे पहुंचेबा मे हिनकर बरका योगदान छनि। जापान नौ बेर, अमेरिका दु बेर और फ्रांस एक बेरा जा चुकल छथि। मूल रूप सं मधुबनी जिला के रांटी गामक निवासी कर्पूरी देवी केर मिथिला चित्रकला के क्षेत्र मे उल्लेखनीय योगदान लेल राष्ट्रीय पुरस्कार भेट चुकल छनि। मिथिला पेंटिंग के संरक्षक जापानी व्यक्ति हाशिगावा के निमंत्रण पर पहिल बेर 1988 मे जापान गेल रहथी।

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हाशिगावा जापान मे मिथिला म्यूजियम स्थापित केने छथि। एहिके उपरांत त बेसी काल जापान एनाय-जेनाय होइत रहलनी। बिहार के सुदूर ग्रामीण इलाका सं निकैल के विदेशी धरती के सफर अल्लुक नै छलनी। जहन पहिल बेर जापान जेबाक निमंत्रण भेटलनि त असमंजस मे छलथि जे जाय की नै जाय। भाषा के सेहो समस्या छलनी मुदा हिम्मत क आगू बढ़ली और विदेशी धरती पर मिथिला के अहि  लोक कला के पहचान भेटेबा मे अपन योगदान देलथी। आय जापान के संगे अमेरिका, फ्रांस आदि देशक आर्ट गैलरी मे हिनकर बनाओल मिथिला पेंटिंग भेट जाइत अछि।विदेशी लोग अपन अहि कला के भरपूर सम्मान दैइत अछि ओतय इ बहुते लोकप्रिय अछि।



शुक्रवार, 8 मार्च 2019

हरिमोहन झा 'खट्टर काकाक' स्मरण मे - Harimohan Jha Biography

मैथिली साहित्यक क्षितिज पर जाज्वल्यमान नक्षत्र सन अहर्निश प्रदीप्त अतिशय लोकप्रिय रचनाकार पंडित श्री हरिमोहन झाक ( Hari Mohan Jha 'khattar kaka' Bajitpur ) जन्म १८ सितम्बर सन १९०८ मे वैशाली जिला अंतर्गत कुमर बाजितपुर नामक गाम मे भेल रहनि।  हिंदी तथा  मैथिलीक लब्धप्रतिष्ठ साहित्यकार जनार्दन झा जनसीदनक तेसर संतान प्रो. झा केँ संस्कार मे पांडित्य आ साहित्य परिवार सँ उपहार मे भेटलनि।

बाल्यकालहि सँ 'ननकिङबू' केँ पिताक सानिध्य मे साहित्यक गहन बोध होएब आरंभ भए गेल रहनि आ खेलौनाक स्थान पर ओ शब्द-अलंकार सँ खेलाए लागल रहथि। कहबी अछि जे पिता-पुत्रक संवाद सेहो सानुप्रास पद्य मे होइत छलनि। नियमित शिक्षा सँ दूर रहैत पिताक साहचर्य मे पंद्रह बरख धरि हिनक नामाकरण कोनो विद्यालय मे नहि कराओल गेल छल। मात्र पिताक संसर्ग मे रहैत 'ननकिङबू' पूर्ण मनोयोग सँ साहित्यिक अवगाहन करैत रहलाक आ 'अपूर्णे पंचमेवर्षे वर्णयामि जगत्रयम' चरित्रार्थ करए लगलाह । विद्यालाय मे नामांकनक समय संस्कृत मे धाराप्रवाह वक्तृता सँ अचंभित गुरुजन समाज हिनक विशिष्ट प्रतिभाक आदर करैत हिनक नामाकरण सोझे मैट्रिक मे कराओल गेल आ १९२५ मे पटना विश्वविद्यालय सँ ई प्रथम श्रेणी मे मैट्रिक परीक्षा उतीर्ण कएलनि। १९२७ मे इंटरमिडियटक परीक्षा मे तेजस्वी छात्र हरिमोहन बिहार आ उड़ीसा मे संयुक्त रूप सँ सर्वोच्च्य स्थान प्राप्त कएलनि । १९३२ मे दर्शनशास्त्र सँ स्नातक मे सर्वोच्च स्थान प्राप्त कए स्वर्ण पदक सँ विभूषित भेलाह आ  १९४८ मे पटना कॉलेज मे प्राध्यापक नियुक्त भेलाह से आगाँ पटना विश्वविद्यालय मे प्रोफेसर तथा विभागाध्यक्ष पद केँ सेहो सुशोभित केलाह । 

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हरिमोहन झाक जाहि समय मे रचना करैत छलाह  से साहित्यिक आ सामाजिक उत्थान आ जनजागरणक समय रहैक । लोकक परिपेक्ष आ सरोकार मे परिवर्तन होएब आरम्भ भए गेल छलैक। एहि प्रभाव सँ समुच्चा विश्व एकटा नव वैचारिक परिवेश मे प्रविष्ट कए रहल छल। वैश्विक प्रभाव सँ भारत मे सेहो एकाधिक रूप मे परिवर्तन दृष्टिगोचर भए रहल छलैक । एहि परिवर्तनकारी समयक प्रभाव मे हिनक लेखनी मे समकालीन समाज मे पसरल धार्मिक रूढ़ीपंथ केर वर्णन  प्रखरतम रूप मे भेटैत अछि। एहि समय मे सामान्यतः दूगोट विचारधारा मुख्य रूपेँ सक्रीय छलैक । एकटा वर्ग पाश्यात आदर्श केँ अपनबैत अपन   समाज केँ पुनर्गठित आ चेतना सम्पन्न करबाक आग्रही छल तँ दोसर दिस किछु लोक अपन गौरवमय अतीत सँ सकारात्मक तत्व सबकेँ लए ताहि प्रवाभ केँ समेटैत समाज केँ पुनर्गठित आ चेतना सम्पन्न बनेबाक आग्रही छल। मिथिला पर एहि पुनरोत्थान प्रवित्ति केँ विशेष प्रभाव पड़लै। दोसर वर्ग जे पहिलुक स्थापित व्यवहारक सीमा मे रहैत सुधार चाहैत छलाह तिनकर सीमा के तोरैत हरिमोहन झा धर्मसातर पर प्रहारक रुख अपनौलनी। हुनक साहित्य में बुद्धिवाद और तर्कवाद केर सर्वोपरि स्थान भेटैत अछि आ हुनक धारणा रहैन जे तर्क नहि कए सकैत अछि से मूर्ख अछि। हिनक रचना मे एक दिस बौद्धक दुख:वाद केर प्रभाव तँ दोसर दिस चार्वाक केर दर्शनक प्रभाव भेटैत अछि। हिनकर लेखनी मे वर्ण व्यवस्थाक निंदा,दलित विमर्शक पक्ष,सामंती शोषणक विरोध आदि बड़ कम भेटैत अछि,तें हिनका मार्क्सवादी किंवा जनवादी तँ नहि मानवतावादी कहब बेसी युक्तसङ्गत होएत आ से हिनक रचना कन्याक जीवन आ पांच पात्र मे देखल जा सकैत अछि। ई धार्मिक पाखंड केँ अपन लेखनीक जड़ि बनौलनि आ किंसाइत एहि केँ सभक बीज मानि साबित करबाक यत्न कएलनि  जे नाक एम्हर सँ छुबु वा उम्हर सँ बात एक्के।
हरिमोहन झाक अधिकांशतःरचना हास्य-व्यंगक रचना अछि आ कतेको कवि सम्मलेन ,कवि गोष्टि सभ मे हिनक कविता गोष्टिक आकर्षण रहल अछि।  हिनक लिखल पैरोडी ओहि समय मे कतेको जुबान पर रहैत छल। हिनक आशु प्रतिभा विलक्षण रहनि। एहि मादे हिनके लिखल एकटा संस्मरण एहि प्रकार सँ अछि :-
" जखन ई बीस बरखक रहथि तखन भारतीय हिंदी साहित्य सम्मलेनक अधिवेशन ( मुज्जफ्फारपुर) हरिऔधजीक अध्यक्षता मे भेल रहैक आ मंच पर  रामधारी सिंह दिनकर,गोपाल सिंह नेपाली,राम वृक्ष बेनीपुरी सन उद्भट विद्वान् रहथिन। एहि बीच एकटा ठेंठ भोजपुरिया कवी मंच पर आबि तिरहुतिया केँ बनबय लगलाह आ कविता पाठ करैत कहला –
"अइली अइसन तिरहुत देस,मउगा अदमी उजबुज भेस
मन लायक भोजन न पैली,चुडा दही फेंट कर खैली !"
एकर उतारा मैथिली मे दैत हरिमोहन झा अपन कविता पाठ मे कहलखिन -
"भोजपुरिया सब केहन कठोर ,पुछैथ तसलबा तोर की मोर
सतुआ के मुठरा जे सानथि,चुडा दहिक मर्म की जानथि"
सभा भवन करतल ध्वनि सँ गूँज  उठल,हरिऔध जी माला पहिरौलखिन,बेनीपुरी जी बजला बचबा खूब सुनाओल,थएथए भ गेल ,आ भोजपुरिया कवि भरि  पाँज कए  धए  कहलखिन आब तिरहुत के लोहा मानि गेलहुँ। एहन छलाह पंडित हरिमोहन झा ।"
अपन रचना काल मे प्रो. झा करीब दू दर्जन पोथीक रचना कएलनि। ई मूलतः गद्यकार छलाह। हिनकर लिखल मैथिली कृति मे विशेषतः उपन्यास आओर कथा अछि । यद्यपि पंडित झाक कविता सेहो ओतबे मनलग्गू आ प्रभावकारी होइत छल। कविता सभ मे व्यंग केर माध्यम सँ सामाजिक व्यवस्था पर प्रहार करैत हिनक कविता  ढाला झा ,बुचकुन बाबू, पंडित आ मेम आदि सभ एखनहुँ प्रासंगिक अछि । हिनका द्वारा लिखल गेल उपन्यास सभ मे कन्यादान आ द्विरागमन सबसँ बेसी प्रसिद्ध अछि। बस्तुतः ई एके उपन्यासक दू भाग कहल जएबाक चाही । कथा संग्रह सभ मे प्रणम्य देवता,चर्चरी आ रंगशाला प्रमुख अछि । एकर अतिरिक्त हिनक आत्मकथा 'जीवन यात्रा' जे साहित्य अकादमी सँ छपल आ एहि पोथी पर पंडित झाकेँ मरणोपरांत साहित्य अकादमी पुरस्कार देल गेलनि। हिनक रचना सभ 'हरिमोहन झा रचनावली' नाम सँ सेहो प्रकाशित भेल अछि। हिनक सर्वश्रेष्ट कृति भेलनि 'खट्टर काकाक' तरंग' जकर अनुवाद कतेको भाषा मे भेल। प्रो. झा दर्शनशास्त्रक  उद्भट विद्वान छलाह। एहि विषय मे हिनक सेहो किछु महत्वपूर्ण पोथी आ अनुदित  पोथी सभ अछि। जाहि मे न्याय दर्शन(१९४०), निगम तर्कशास्त्र (१९५२),वैशेषिक दर्शन (१९४३),भारतीय दर्शन (अनुवाद १९५३) आ ट्रेन्ड्स ऑफ लिंग्विस्टिक एनेलिसिस इन इंडियन फिलोसोफी । एहि सभ मे हिनकर शोध ग्रंथ - “ट्रेन्ड्स ऑफ लिंग्विस्टिक एनेलिसिस इन इंडियन फिलोसोफी” सर्वाधिक  प्रसिद्ध अछि। हिनक किछु रचना संस्कृत मे सेहो भेटैत अछि जाहि मे 'संस्कृत इन थर्टी डेज ' आ 'संस्कृत अनुवाद चंद्रिका' छात्रोपयोगी आ प्रसिद्ध अछि। एकर अतिरिक्त प्रो झा कतिपय पोथी/पत्रिकाक सम्पादन कएल जाहि मे 'जयंती स्मारक प्रमुख अछि। 

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प्रो.झा द्वारा लिखल कथा आ ताहि मे वर्णित पात्र लोकक स्मृति मे सहजहि घर करैत अछि आ किछु पात्र तँ एतेक प्रचलित भेल जकर उदहारण एखनहुँ लोकव्यवहार मे अकानल जा सकैत अछि। चाहे तितिर दाई होथि वा खटर काका। के एहन मैथिलीक पाठक हेताह जे एहि पात्र सँ अवगत नहि हेताह। वस्तुतः प्रो झा केँ अपन भाषा पर ततेक मजगूत पकड़ छनि जे अपन शब्द विन्यास सँ कथानक केँ नचबैत लोकक स्मृति मे अपन विशिष्ट  स्थान बनबैत अछि। अपन कथा सभ मे क्लिष्ट संस्कृतक शब्द सभक परित्याग करैत लोक मे प्रचलित शब्द आ फकड़ा आदिक प्रयोग करैत रचना सभ केँ जनसामान्यक लगीच अनैत अछि। गामक ठेंठ शब्द आ गमैया परिवेशक वर्णन करैत सामाजिक कुरुति पर व्यंगक माध्यमे अपन भाषाक निजताक पूर्ण व्यवहार करैत अमर रचना सभ करैत रहलाह। रचना सभ पढ़ैत काल वर्णित घटनाक्रम सद्य: घटित आ वास्तविक प्रतिक होइत अछि। पढ़ैत काल कखन हँसी छुटत आ कखन आँखि नोरायत ई अटकर कठिन भए जाइत अछि।  हिनक रचना सभ मे परिवर्तनक स्वर उठैत अछि।  नव परिवेशक झाँकी प्रस्तुत करैत अछि। पाठक केँ उचित -अनुचित सँ अवगत करबैत ओकरा अपन स्वत्व केँ चिन्हबाक मादे प्रेरित करैत अछि। ग्रामसेविका,मर्यादाक भंग ,ग्रेजुएट पुतौह एहने  भूमिका मे लिखल कथा सभ अछि जे एकटा परिवर्तित समाज आ ताहि मे स्त्रीक भूमिका केँ सोंझा अनैत अछि। सामाजिक रूढ़ता पर प्रहार करैत कथा कन्याक जीवन , परिवारिक सामंजस्य आ मध्यम वर्गीय परिवारक सुच्चा चित्रण करैत कथा पंच पत्र आ मिथिलाक व्यवहार सँ परिचित करबैत कथा तिरहुताम सन अनेको कथा सभ अपन संवाद शैली आ कथ्य केर लेल विश्व साहित्यक कोनो भाषा केँ समक्ष ठाढ़ होएबाक सामर्थ्य रखैत अछि। 

जहिना विद्यापति मैथिली पद्य केँ स्थापित कएलाह आ एकरा जनसामान्य तक पहुँचा साहित्यिक उत्कर्ष प्रदान केलनि तहिना हरिमोहन झा मैथिली गद्य केँ एकटा नव आयाम दैत बेस पठनीय बनौलनि आ मैथिली गद्यक विद्यापति कहेबाक अवसर पौलनि। मैथिलीक  श्रीवृद्धिक लेल सदिखन तत्पर, हिनक लिखल उपन्यास कन्यादान पर पहिल मैथिली सिनेमा सेहो बनल।  एखनधरि मैथिली मे सबसँ बेसी पढ़ल जाए बला लेखकक गौरव सेहो हिनकहि प्राप्त छनि। हिनक बहुत रास पोथी आब अनुपलब्ध भए रहल अछि आ मात्र फोटोकॉपी उपलब्ध भए पबैत अछि। एहि मादे विशेष पहल करबाक खगता अछि। मैथिलि केँ स्थापित करबा मे आ लोकप्रि बनएबा,ओकरा एकगोट बजार विकसित करबा मे हिनक योगदान अभूतपूर्व अछि। ई काव्य शास्त्र विनोदेना बला उक्ति  केँ  पूर्णतः सत्यापित करैत काव्य सास्त्र आ विनोद तीनू पर सामान अधिपत्य रखैत छलाह। अपन रचना सभ मे दिगंत धरि जिबैत २३ फ़रवरी १९८४  मे हिनक देहावसान भेलनि ...
सन्दर्भ :
१.देसिल बयना –हरिमोहन झा विशेषांक
२.अंतिका – हरिमोहन झा विशेषांक
३. हरिमोहन झा रचनावली
४. जीवन यात्रा
५ . बिछल कथा

साभार : विकाश वत्सनाभ

रविवार, 3 मार्च 2019

इ छथि ओ वुमनिया फेम मिथिलाक बेटी रेखा झा

छवि साभार
मिथिला धरोहर, प्रभाकर मिश्रा 'ढुन्नी' : हिनका देखी के अनुमान लगेनाइ कठिन भ जाइत अछि जे 'ओ वुमनिया' एहन शरारती गाना के अपन अबाज देने छथि। रेखा झा ( Singer Rekha Jha ) के जन्म समस्तीपुर जिला के कल्याणपुर गाँउ मे भेल छनि। एतय ओ अपन स्कूली शिक्षा पूरा केलथि। रेखा झा एकटा संगीतकार के परिवार सं आबय छथि, कियाकि हिनकर पिता भारतीय शास्त्रीय संगीत के लेल  जानल जाइत छलथि। संगीत मे हिनकर शिक्षा पहिले घर सं आरम्भ भेलनि और लगभग १० सालक उम्र सं गीत गाबि रहल छथि। हिनकर पिता, पंडित श्री हरिहर पाठक, शास्त्रीय और लोक संगीत लेल हिनक गुरु मे सं एक छथि।बाद मे ओ बिहार के जानल-मानल शास्त्रीय संगीतकार डॉ० योगेंद्र भारती सं सेहो प्रशिक्षण प्राप्त केलनि।
छवि साभार 
रेखा के बियाहक १७ साल भ गेल छलनी, त ओ घर-गृहस्थी मे एहन रमीं गेलथि जे संगीत के सुर सं नाता टूइट गेलनि। मुदा बियाह के १८ साल बाद पति पंकज झा हिनका फेर सं संगीत के अभ्यास करबाक लेल कखलथि। कनि हिचकिचाहट के बाद रेखा जी संगीत के औपचारिक प्रशिक्षण लेलनी। संगे मैथिली भाषी रेखा भोजपुरी सेहो सीखलनी।

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अहि बीच पटना मे 'ओ वूमनिया' लेल ऑडिशन भेल। संगीत निर्देशक स्नेहा खानवलकर के रेखा झा के आवाज़ पसंद एलनी। रेखा झा ऑडिशन के दौरान मैथिली मे 'महेश्वानी' और फेर 'ओ वोमेनिया' गाना गेलथि।

साल २०१२ मे फ़िल्म 'गैंग्स ऑफ़ वासेपुर' के 'ओ वुमनिया' गाना सं सबके दिल पर राज क चुकल ४४ साल के रेखा जी पहिल बेर अहि गना के जरिए बाहरक दुनिया देखलथि। 
रेखा झा के स्टार गिल्ड अवार्ड्स २०१४ मे 'ओ ओ वोमेनिया’ के लिए सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायन के लेल सम्मानित कैल गेल छनि। संगे हिनका चेतना समीती द्वारा आयोजित मैथिली लोकगीत लेल बिहार के राज्यपाल द्वारा सम्मानित कैल गेल छनि और बिहार कला श्री और बिहार कला भूषण एहन सांस्कृतिक संगठन आदि द्वारा सेहो सम्मानित कैल जा जुकल छनि।

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ओ वुमनिया' हिट भेला के उपरांत रेखा के बॉलीवुड सं दु गो ऑफ़र भेटलनी मुदा पति पंकज झा के किडनी संबंधित बीमारी के चलैत रेखा के संगीत सं रिश्ता फेर टूइट गेलनि।

साल २०१५ के बाद पति पंकज झा के हालत मे सुधार भेलनि त ज़िंदगी फेर सं पटरी पर लौटनाय शुरू भेलनि। एखन पटना के अशोक नगर मे रहै बाली रेखा अहि बीच बिहार के कतेको सार्वजनिक मंच पर अपन आवाज़ जादू बिखेरलनी।

हिनका छैन कलाकृति के जमा करवा के शौख, 2005 मे भेल छैथ सम्मानित

जमा कैल प्राचीन माटीक बर्तन, दीपदान आदि के संग शंकर साह।
भागलपुर : सुल्तानगंज के जहांगीरा गाम के शंकर साह पेशा सँ पोस्टमास्टर छथि, मुदा कलाकृति सँ भागलपुर आ मुंगेर के संग्रहालय समृद्ध क रहल छथि। इ अपन गांव आ आसपास के गंगा कात, पहाड़ आ चट्टान सँ प्राचीन आ बेशकीमती कलाकृति के खोज करय छथि। ओ सुरक्षित रहय और अंगप्रदेश के लोग ओहि के देखि के ऐतिहासिक धरोहर सँ भेंट-घांट क सकय, ताहि लेल ओहि सामान के संग्रहालय मे जमा क दैत छथि। बिना स्वार्थ और आर्थिक सहयोग के।

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एखन धरि सौ सँ बेसी कलाकृतियां संग्रहालय मे जमा क चुकल छथि। एहीमे पंच मार्का सिक्का, मुगलकालीन सिक्का, तांबा सिक्का, मातृ शक्ति, दीपदान, माटी पर बनल दर्पण, भिक्षु पात्र, घड़ा, कलश आदि सामग्री अछि जाहिके देखि संग्रहालय के अध्यक्ष आ ओकरा देखय वला सेहो अभिभूत अछि।
प्राचीन ऐतिहासिक धरोहर के खोजवा के और फेर ओहिके संवारवा के शौख शंकर साह केर 32 बरख सँ अछि। बात 1984 के अछि, शुरू मे ओ सुल्तानगंज के गंगा कात बसल अपन गांव जहांगीरा के कात घूमय जाइत छलैथ। कहल जाइत अछि जे ओतय कहिओ जह्नावी ऋषि केर कुटिया छल। जेखन ओ ओतय घूमय जाइत छलैथ त तांबे के सिक्का भेंटलनि। जेकरा ल के ओ घर गेला। गांवक लोग के देखेलैथ। मुदा किओ हिनका दिस ध्यान नय देलक। मुदा एहीके उपरांत नियमित रूप सँ ओतय जाय लगला। गंगा किनार माटी खोइद  किछु तकवा मे भोरे सँ जुइट जाइत छलैथ।

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शंकर साह केर एही काजक लेल वर्ष 2005 मे तत्कालीन डीएम विपिन कुमार भागलपुर बजा के हिनका एकटा कार्यक्रमक दौरान सम्मानित सेहो केलनि।