शुक्रवार, 12 दिसंबर 2025

मैथिली विवाह गीत लिरिक्स - स्नेहलता स्नेह - Snehlata Maithili Vivah Geet

      घीढारि     

     सोहाग मथझप्पी     

     नहछू गीत     

     मधुपर्क गीत     

       घनबट्टी       

      कमला पूजन      

      मटकोर       



      जयमाला      


     मण्डप परिक्रमा       

     कन्यादान        







      परछावन      


     गाली गीत       


खीर स गर्भ रहल जननी के अपने अहां जनै छी,
श्रृंगीक बदला दशरथ के कोना क बाप कहे छी। 
हमरा बजैतो लाज लगैये यौ दुलरूआ कोना बाजु

       ओठंगर       



      बिलोकु (छवि दर्शन)     

     कमर खोलाई एवं नव वस्त्र धारण     

      श्रीराम की शोभा      

       नूतन वसन        

      कन्या निरीक्षण       


नूतन वसन पिताम्बर, कटि कस पावन हे लिरिक्स

नूतन वसन गीत

नूतन वसन पिताम्बर, कटि कस पावन हे। 
पीत जनेऊ सुमंगल परम सुहावन हे।। 

अलिगन कहि मृदु वचन करथि परतारन हे। 
जकिकरू लाल मनावन उठिकरू धारन हे।। 

विहँसि कहल एक नारी ललन करू लाजन हे। 
छाडू कुलक निज रीति तखन करू चायन हे।। 

लखि पुरहित असमंजस देल अनुशासन हे। 
उठि उठि पहिरल वस्त्र हरष हिय लालन हे।। 

स्नेहलता हँसि कहथिन कयल विचारन हे। 
अहाँ मानल विप्रक बात अवश किछु कारण हे।।


बुधवार, 10 दिसंबर 2025

स्नेहलता स्नेह के मैथिली शिव भजन नचारी लिरिक्स - Snehlata Maithili Nachari Geet

मैथिली शिव पार्वती गीत लिरिक्स


























स्नेहलता स्नेह - एक संक्षिप्त जीवनी - Snehlata Maithili Geetkar

जन्म: 1909, डरौड़ी गाँव, समस्तीपुर (बिहार)
मूल नाम: कपिलदेव ठाकुर
भनिता / उपनाम: स्नेहलता, लतिका सनेह, सनेहिया, स्नेह

स्नेहलता जी बिहार–मिथिला की भक्ति परंपरा के वह दीप्तिमान नाम हैं जिन्होंने अपने जीवन का हर क्षण भगवान राम–सीता की भक्ति, लोकगीतों, विनय पदावली, शिव वंदना और लोक-मंगल अनुष्ठानों को समर्पित किया। गाँव की मिट्टी में पले-बढ़े कपिलदेव ठाकुर ने बचपन से ही भक्ति-संगीत को अपना नैष्ठिक मार्ग बनाया।

"भूमंडल के अमर गोद में 
मुसकाहट सुन्दर मिथिला के । 
ममता भरल सरस रजकण मे 
मचलाहट सुन्दर मिथिला के''

सन 1936, सीतामढ़ी के अखिल भारतीय संकीर्तन सम्मेलन में, जब उन्होंने अपना विनय-गीत और विवाह-गीत प्रस्तुत किया तो पूरा मंच तालियों से गूँज उठा।
उसी मंच पर अयोध्या के महान संत श्री वेदान्ती जी महाराज ने उनकी अद्भुत भक्ति–भावना से अभिभूत होकर उन्हें नया नाम दिया - “स्नेहलता”। इस नाम के पीछे वह कोमलता, प्रेम और भक्ति थी जो उनके गीतों की हर पंक्ति में झलकती थी।

स्नेहलता जी के गीत :—

राम-सीता विवाह,

जनकपुर वंदना,

भक्ति-गीत,

गोसाउनी गीत,



कोहबर और विवाह-परम्परा

—इन सबके कारण बिहार-नेपाल की कीर्तन मंडलियों में अत्यंत लोकप्रिय हुए।


उनकी रचना “दुवार के छेकाई नेग पहिले चुकइयौ हे दुलरुआ भैया” सिर्फ एक गीत नहीं, बल्कि कोहबर की लोक-संस्कृति का आधार बन गई। यह गीत आज भी शादी की रस्मों में राम–सीता विवाह की स्मृति जगाता है।

उसी दौर में शारदा सिन्हा संगीत की दुनिया में प्रवेश कर रही थीं। महिला कलाकार कम थीं, अच्छे गीतकार और भी कम। स्नेहलता जी का हृदय अत्यंत सरल था। उन्होंने अपनी कीर्तन-पोथी से दस गीत शारदा जी को दिए, यह विश्वास दिलाते हुए कि वे दरौड़ी और स्नेहलता को याद रखेंगी। इन दसों गीतों ने आगे चलकर शारदा जी को अत्यंत प्रसिद्धि दिलाई—परंतु दुखद रूप से स्नेहलता जी का नाम कभी सामने नहीं आया।

स्नेहलता लिखित व 'बाबा' (स्व सूर्यदेव ठाकुर) द्वारा मंच से गाया उनका अंतिम गीत

तोहे राखूँ पियरववा, कबने विधि से ।। तोहे रा ।। हिया बिच राखूँ ता अँखिया तरसे,

अँखियों में राखूँ तो हिया तरस ।। तोहे राखूँ पियरवा ।।

इस उपेक्षा ने परिवार को गहरी पीड़ा दी। सन 1993 में, जीवन के अंतिम वर्षों में, भक्ति में लीन स्नेहलता जी इस संसार से विदा हुए। उनके पुत्र श्रीकांत ठाकुर ने उनके सारे मूल दस्तावेज - गीत, भास, पदावली - एक बक्से में बंद कर दिए, भगवान राम को समर्पित करते हुए।

बाँके बिहारी झा 'करील' जी की संक्षिप्त जीवनी - Banke Bihari Jha Kareel Jivan Parichay

Banke Bihari Jha Kareel Biography in Hindi

बाँके बिहारी झा उर्फ 'करील' जी बिहार के भागलपुर के भ्रमरपुर गाँव में जनवरी 1936 में पैदा हुए। बचपन से ही वे बहुत शांत, सरल और पढ़ने-लिखने वाले थे। उनका स्वभाव पूरी तरह सात्विक और भक्ति से भरा था।

बचपन और भक्ति
उनकी माँ बाल-गोपाल (कृष्ण) की बड़ी भक्त थीं। माना जाता था कि उनकी कृपा से ही करील जी का जन्म हुआ। वे बचपन से ही भजन, कविता और लेख लिखने लगे। 8वीं कक्षा से ही उनकी रचनाएँ लोगों के बीच प्रसिद्ध होने लगीं।

साहित्य और शिक्षा
उन्होंने हिंदी और संस्कृत दोनों विषयों में एम.ए. किया और Gold Medal भी मिला। इसके बाद वे बक्सर के M.V. College में प्रोफेसर बन गए।

वे कई भाषाओं - मैथिली, हिंदी, संस्कृत, अवधी, बंगला, बृज, अंगिका - में भजन और काव्य लिखते थे। उनकी प्रसिद्ध किताब “करील कादम्बिनी” (1970), अभिसारिका - आत्मा से अनंत तक”, हितोपदेश” आज भी लोगों द्वारा पढ़ी और गाई जाती है।

आध्यात्मिकता
कभी एक बार स्वप्नादेश के द्वारा एक समारोह में उन्हें राम की भूमिका निभाने को चुना गया। उनकी मृदुलता और शांति देखकर लोग उन्हें प्यार से “राम जी” कहने लगे।

उनके भजन इतने प्रभावशाली थे कि मंच पर गाते ही पूरा माहौल बदल जाता था। एक बार आंधी-तूफान में उन्होंने अंधेरे में “अंधियरवा में राम मोरा पूनम के चंदा” गाना शुरू किया, और पूरा पंडाल शांत हो गया।

परिवार और स्वभाव
वे स्वभाव से बहुत संकोची, सरल और सन्यासी प्रवृत्ति के थे। विवाह में रुचि नहीं थी, पर माता की इच्छा से उन्होंने कौशल्या देवी से विवाह किया, जो अत्यंत सहनशील और धर्मपरायण थीं।

उनका जीवन कई दुखों से भी भरा था। उनके बड़े बेटे का निधन हुआ, लेकिन उन्होंने कहा “जो भगवान का था, वो उनके पास चला गया।” और वे नाम-संकीर्तन में लग गए।

सम्मान
महादेवी वर्मा, डॉ. राधाकृष्णन जैसे बड़े साहित्यकार उनसे पत्राचार करते थे। उनकी लिखी रचनाएँ आज भी कई जगह भाव से गाई जाती हैं, जैसे :-

तेरी मर्जी का मैं हूँ गुलाम

अंतिम समय
माता के देहांत के बाद उन्हें ब्लड कैंसर हुआ। बीमारी बढ़ती गई, पर वे हमेशा भगवान के नाम में लगे रहे। 25 दिसंबर 1976 में, सिर्फ 40 साल की उम्र में, वे गोलोक धाम चले गए।

“करील” नाम क्यों?
वे कहा करते थे - “मैं वृंदावन की करील झाड़ी जैसा बनना चाहता हूँ, जो श्री बिहारी जी के चरणों में चुभने वाले काँटों को रोक ले।”

मंगलवार, 9 दिसंबर 2025

बाँके बिहारी झा 'करील' केर मैथिली गीत लिरिक्स - Banke Bihari Jha 'Kareel' Ji Ki Rachnaye

बांके बिहारी झा करील जी की रचना और मैथिली गीत संग्रह






















सोमवार, 8 दिसंबर 2025

पहिल परन सिया ठानल लिरिक्स - Pahil Paran Siya Thanal Lyrics Sohar Geet

पहिल परन सिया ठानल, 
सेहो बिधि पूरा कैलन हे
ललना रे, जनकपुर सन भेल नैहर, 
अजोधेआ सासुर हे,

दोसर परन सिया ठानल, 
सेहो बिधि पूरा कैलन हे
ललना रे, पैलन कोसिलेआ सन सासु, 
ससुर राजा दसरथ हे,

तेसर परन सिया कैलन 
सेहो बिधि पूरा कैलन हे
ललना रे, पाओल राम सन सामी 
लखन सन देवर हे ,

चारिम परन सिया ठानल, 
सेहो बिधि पूरा कैलन हे।
ललना रे, पाओल लवहर कुसहर पूत, 
सेवक बीर हलुमंत हे.

रविवार, 7 दिसंबर 2025

स्वर्ण सिंदूर दूल्हा धीरे से उठाउ हे लिरिक्स - Savarn Sindur Dulha Dhire Se Uthaoo Lyrics

स्वर्ण सिनूर दूल्हा धीरे सऽ उठाउ हे
दशरथ जी के बबुआ

धीरे धीरे लली के लगाउ हे 
दशरथ जी के बबुआ

लाज ने करू दुलहा हृदय के सम्हारू 
हे दशरथ जी के बबुआ

जल्दी सँ करू सिन्दूरदान हे 
दशरथ जी के बबुआ

कँपैत कर के करू स्थिर हे 
दशरथ जी के बबुआ

लली के हृदय लगाउ हे 
दशरथ जी के बबुआ

कवने नगर के सिनुरा बेसाहि एलौं यौ लिरिक्स - Kavane Nagar Ke Sinura Besahi Lyrics

कओने नगर के सिनुरा, 
सिनूरा बेसाहि एलौं यौ
बाबा कओने नगर जुआ खेलि एलौं, 
हमरो के हरि एलौं यौ

हाट बजार के सिन्दुरबा, 
सिन्दुर बेसाहि एलौं गे बेटी
अवधनगर जुआ खेलि एलौं, 
सीता बेटी हारि गेलौं हे

देसहिं देश हम पत्र देलौं, 
सब व्यर्थ केलौं हे
बेटी अपने सऽ आयल दुइ बालक, 
धनुषा के तोड़ि देलनि हे

हमर प्रतिज्ञा कठिन भारी, 
सेहो आब पूरि गेल हे
बेटी पूरि गेल हमरो मनोरथ, 
जुगलत जमाइ भेला हे

प्रिय पाहुन सिन्दूर दान करू लिरिक्स - Priy Pahun Sindur Dan Karu Lyrics

प्रिय पाहुन सिन्दूर दान करू
प्रिय पाहुन सिन्दूर दान करू

एहि अवसर नहि लाज उचित थिक, 
एहन ने किछु हठ मान करू,
प्रिय पाहुन सिन्दूर दान करू

लियऽ सिन्दूर कर कमल मुदित चित सँ, 
हमर कथा किछु कान धरू,
प्रिय पाहुन सिन्दूर दान करू,

लग्न मुहुर्त सुमंगल एखन 
आब ने विलम्ब महान करू
प्रिय पाहुन सिन्दूर दान करू

मधुर स्वर छेडू तान सखि हे
सभ मंगल गान करू
प्रिय पाहुन सिन्दूर दान करू

दामोदर विधि आजु मुदित चित 
वर कन्याक कल्याण करू
प्रिय पाहुन सिन्दूर दान करू