मंगलवार, 18 सितंबर 2018

उदासी - मैथिली लोकगीत

१. जौं हम जनितहुँ हे सखि - Maithili Lokgeet

जौं हम जनितहुँ हे सखि कृष्ण चलि जयता
सबेरे बिहाने घरबा जयतहुँ हो लाल
जौं हम जनितहुँ कृष्ण रूसि जयता
से पलंगे पर सप्पत खुअबितहुँ हो लाल
एक मोन होइए कृष्ण संगे जइतहुँ
कुलबा मे दगबा लगै छै हो लाल
जौं हम जनितहुँ कृष्ण रूसि जयता
दोसरे प्रीति लगाय रोकितौं हो लाल
घोड़बा चढ़ल आबथि कृष्ण जी पहुनमा
चम चम चमके चदरिया हो लाल
धैरज धरू गोपी से कृष्ण चलि एता
सांझ बिहाने घरबा मे जायब हो लाल

२. माधव चलल मधइयापुर - Maithili Lokgeet

माधव चलल मधइयापुर हे नगरी
तेजि गेल सकल समाज
के मोरा वृन्दावन मे गइया हे चरेतै
के मुख मुरली बजाइ
के मोरा जमुना मे हैत घटबरबा
के मोरा उतारत पार
बाबा मोरा वृन्दावन मे गइआ हे चरेता
भइया मोरा मुरली बजाइ
देओरा मोरा जमुना तट मे हैत घटबरबा
स्वामी लगाओत पार
जौं हम जनितहुँ माधव तेजि जयता
बान्हितहुँ रेशमक डोरि
रेशमक डोरि टुटिये फाटि जयतै
बान्हितहुँ अंचरा लगाय
अंचरा के फाड़ि-फाड़ि कागज बनेलहुँ
नयना के काजर सँ मोसि
चारू कात लिखलहुँ कुशल क्षेम
बीच मे धनि के विरोग

३. एते दिन भमर हमर - Maithili Lokgeet

एते दिन भमर हमर छल सखि हे,
आजु गेल विदेश
मधुपुर भमरा लोभाए गेल सखि हे,
मोरा किछु कहियो ने गेल
भूखल अन्न ने खायल सखि हे,
प्यासल पीब ने पानि
कतेक जनम सँ बोधल सखि हे,
तइयो बसु ओतहि प्राण
श्रीखंड जौं शीतल भेल सखि हे,
शीतल आब नब रीत
चक्रपाणि कवि गाओल सखि हे,
पुरुषक कोन परतीत

४. कथी लय प्रीत लगेलें रे - Maithili Lokgeet

कथी लय प्रीत लगेलें रे जोगिया,
प्रीत लगेने चल जाय
तोरा हाथक पान सपन भेल रे जोगिया,
तोरा बिनु रहलो ने जाय
आंगन तोरा बिनु बिजुवन रे जोगिया,
घर लागय सुन्न-अन्हार
आरे सूतक पलंग विषम भेल रे जोगिया,
निन्दिया मोहि ने सोहाय
भनहि विद्यापति सुनू हे सखि सभ,
हुनि बिनु रहलो ने जाय

५. काँच ईंटाक महल उठाओल - Maithili Lokgeet

तोहर दरस मुख छूटत सखि हे, जखन जायब हम गाम
तखन मदन जीव लहरत सखि हे, कि देखि करब ज्ञान
बिसरि देत नहि बिसरत सखि हे, तुअ मुख पंकज प्राणे
विरह विकल तन फलकत सखि हे, छन-छन झूर झमाने
जौं हम जनितौं एहन सन सखि हे, हरि हेता आन समान
कथी लेल नेह लगाओल सखि हे, आब ने बचत मोर प्राण
भनहि विद्यापति गाओल सखि हे, धैरज धरू ब्रजनारि
सब सँ धैरज यैह थिक सखि हे, पलटि आओत दिन चारि

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६. जखन सिया जी तेजि मिथिला - Maithili Lokgeet

जखन सिया जी तेजि मिथिला सँ चलली, हे की कहिअ बहिन
मिथिला खसल मुरझाय, हे की कहिअ बहिना
नयन सँ झहरनि नोर, हे की कहिअ बहिना
कनथिन सुनैना रानी तोता आर मयना, हे कि कहिअ बहिना
कहलो ने जाइ अछि सिया केर सुरतिया, हे कि कहिअ बहिना
आब सिया जेती बिसराय, हे कि कहिअ बहिना
कहथिन पूनम रानी अपनी बचनिया, हे की कहिअ बहिना
फेर सिया औथिन मिथिला धाम, हे कि कहिअ बहिना

७. जखनहि रामचन्द्र चलला - Maithili Lokgeet

जखनहि रामचन्द्र चलला अवध सँ, संग भेल लछुमन भाइ
सगुनक पोथिया उचारू भइया लछुमन, कते दिन लिखल बनवास
कय दिन केर एक रे महिनमा, कय बरस लिखू बनवास
तीसहि दिन केर एक रे महिनमा, बारह बरस लिखू बनवास
एक तऽ बैरिन भेल बीध विधाता, दोसर कैकेयी माय
तेसर बैरिन भेल इहो रे पंडित, तीनू मिलि देल बनवास
भनहि विद्यापति गाओल उदासी, राम के लिखल बनवास
जखनहि रामचन्द्र चलला अवधसँ, सुन्न भेल दशरथ धाम

८. भितिया मे चितिया साटल रघुनन्दन - Maithili Lokgeet

भितिया मे चितिया साटल रघुनन्दन, ताहि मे जे सिनुर-पिठार
जखन जमाय बाबू कोबर सँ बहार भेला, सरहोजि भेलीह उदास
एहनर नन्दोसिया जी के जाइयो नहि दीतहुँ, रखितहुँ पान खोआय
जखन जमाय बाबू भानस घर सँ बहार भेला, सासुजी भेलीह उदास
एहन जमाय के जाहू ने दीतहुँ, रखितौं मिश्री खोआय
जखन जमाय बाबू आंगन संओ बहार भेला, सारि भेलीह उदास
एहन बहिनोइया जी केँ जाइयो ने दीतहुँ, रखितौं मोन लोभाय

९. सिहकि रहल पुरिबा भादव - Maithili Lokgeet

सिहकि रहल पुरिबा भादव मास हे, भादव मास संगी पावस मास हे
एक तऽ हमर संगी पिया परदेशिया, दोसर भादव मास अन्हरिया
खेपि रहल दिन गनैत मास हे, भादव मास संगी पावस मास हे
अरजि गरजि कऽ गीत सुनाओल, कुदि-कुदि दह पर नाच देखाओल
झनकि रहल झींगुर पाबि आकाश रे, भादव मास संगी पावस मास हे
कुचरि रहल अछि कौआ अंगनमा, खनकि रहल अछि हाथ केर कंगनमा
सजलहुँ साज संगी मन दय आस रे, भादव मास संगी पावस मास हे
आओत पाहुन पूरत आस रे, घुरैत दिन संगी फागुन मास रे
जीनगीक गीत संगी आसक भास रे, भादव मास संगी पावस मास हे
भरल अन्हरिया मे छिटकय इजोरिया, सोभै छै दूतिया केर चान
छबे महीना संगी छै संताप रे, भादव मास संगी पावस मास हे
सिहकि रहल पुरिबा भादव मास हे....

१०. गोखुल गमन सँ चलल - Maithili Lokgeet

गोखुल गमन सँ चलल नन्द-नन्दन, गोकुले मे भय गेल साँझ
केओ नहि मोरा लेखे हित बसु सखिया, रखितनि मोहन बिलमाय
कमलक पात तोड़ि कागज बनाओल, नयनाक काजर बनल मोसि
कदमक डारि तोड़ि कमल बनाओल, प्रेम सँ चिठिया लिखाएल
कहथि विद्यापति सुनू हे सखिया, फेरो आयब एहिठाम

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११. शबरीक द्वार सँ चलल - Maithili Lokgeet

शबरीक द्वार सँ चलल रघुनन्दन, शबरी खसल मुरछाइ
कल जोड़ि मिनती करै छी रघुनन्दन, नैना सँ झहरय नोर
अनघन भूषण वसन नहि हमरा, किए लय करब बिदाइ
एहन चरण राजा कहाँ हम पायब, राखब हृदय लगाय
भनहि विद्यापति सुनू हे रमापति, लीखल मेटल नहि जाय

१२. जखन रघुबर संग सिया - Maithili Lokgeet

जखन रघुबर संग सिया वन चलली, मोने मोन करथि विचार
केहन करम मोरा लिखल विधाता, चौदह बरख बनवास
धीरे-धीरे चलिअउ देओर यौ लछुमन, पयर मोर अधिक पिराय
किये हम बिगारलहुँ हे माता कैकेयी, देल तरुणी वयस बनवास
भनहि विद्यापति सुनू सिया सुन्दरि, विधि लीखल मेटल ने जाय

१३. घूरि घूरि घूरि तकिऔ - Maithili Lokgeet

घूरि घूरि घूरि तकिऔ, बात एक सुनिऔ यौ निरमोही दुलहा
धरू किछु हिया मे विार यौ निरमोही दुलहा
जहिया सँ एलहुँ दुलहा सभकेँ लोभएलहुँ यौ निरमोही दुलहा
जोड़िकऽ एतेक प्रेम तोड़ि आइ जाइ छी यौ निरमोही दुलहा
सब के कनाय कयल लचार यौ निरमोही दुलहा
एहन पतित हिया नहि छल ककरो यौ निरमोही दुलहा
मिथिलाक यैह बेबहार यौ निरमोही दुलहा

१४. कृष्ण ओ कृष्ण कहि ककरा - Maithili Lokgeet

कृष्ण ओ कृष्ण कहि ककरा पुकारब, करब आंगन बिच सोर
मधुर वचन मोरा केये सुनाओत, दही माखन घृत घोर
सूतल छलहुँ एकहि पलंग पर, निन्दिया मे गेलहुँ सपनाइ
निन्दिया मे देखै छलहुँ कृष्ण के, मुरली बसुरिया चलि जाय
मुरली सबद सुनि हिया मोर सालय, नयना सँ झहरय नोर
भनहि विद्यापति सुनू हे राधिका, घर घुरि आओत पिय तोर

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१५. जौं सिया जानकी चलल - Maithili Lokgeet

जौं सिया जानकी चलल वन रहना, कानल राम लखन सहित
आरे घुरि जइऔ फिरि जइऔ देओर लछुमन, मोरो संग बिपति बहुत
नहि हम घुरबइ रामा नहि हम फिरबइ, अहूँ संग देब दिवस गमाय
आरे मुठीएक सरिसो खोंइछा बान्हि लेलनि, छीटैत छीटैत वन जाय
गोर लागू पइयाँ पडू धरती माता, जल्दी सँ फाटू हम समाय
एही बाटे जयता श्री राम लछुमन, सरिसो सुररिते घर जाय

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