गुरुवार, 29 अप्रैल 2021

आहे सखि आहे सखि लए जनि जाह | विद्यापति

आहे सखि आहे सखि लए जनि जाह। 
हम अति बालिका निरदए नाह।

गोट-गोट सखि सब गेलि बहराए। 
बजर केवाड़ पहु देलन्हि लगाए।

ताहि अवसर सखि जागल कंत। 
चीर संभारइत जिब भेल अंत।

नहि नहि करिअ नयन ढर नोर। 
कांच कमल भमरा झिकझोर।

जइसे डगमग नलिनिक नीर। 
तइसे डगमग धनिक सरीर।

भन विद्यापति सुनु कविराज। 
आगि जारि पुनि आगिक काज।

रचनाकार - विद्यापति

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