हम एकसरि, पिअतम नहि गाम।
तेँ मोहि तरतम देइते ठाम।
अनतहु कतहु देअइतहुँ बास।
दोसर न देखिअ पड़ओसिओ पास।
छमह हे पथिक, करिअ हमे काह।
बास नगर भमि अनतह चाह।
आँतर पाँतर, साँझक बेरि।
परदेस बसिअ अनाइति हेरि।
मोरा मन हे खनहि खन भाँग।
जौवन गोपब कत मनसिज जाग।
घोर पयोधर जामिनि भेद।
जे करतब ता करह परिछेद।
भनइ विद्यापति नागरि-रीति।
व्याज-वचने उपजाब पिरीति।
रचनाकार : विद्यापति
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