जनम होअए जनु, जओं पुनि होइ,
जुबती भए जनमए जनु कोइ ।
होइए जुबति जनु हो रसमंति,
रसओ बुझए जनु हो कुलमंति।
निधन मांगओं बिहि एक पए तोहि,
थिरता दिहह अबसानहु मोहि।
मिलओ सामि नागर रसधार,
परबस जन होअ हमर पिआर।
परबस होइए बुझिह बिचारि,
पाए बिचार हार कओन नारि।
भनइ विद्यापति अछ परकार,
दंद-समुद होअ जिब दए पार।
रचनाकार : विद्यापति
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