मंगलवार, 26 सितंबर 2017

५१ शक्तिपीठ मे सँ एक छथि खगड़िया के माँ कात्यायनी भगवती

मिथिला धरोहर, खगड़िया : नदि कऽ बीच सुदूर फरकिया इलाका मे बसल माँ कात्यायनी के दरबारक महिमा अपार छनि। माँ दुर्गा केर छठम रुप मे जानल जाय वाली माँ कात्यायनी केर अहि सुप्रसिद्ध मंदिरक ख्याति दूर देश तक अछि। मूल रुप सँ खगड़िया जिलाक फरकिया इलाका मे स्थित धमारा घाट रेलवे स्टेशन'क समीप माता रानी विराजमान छथि। ( Katyayani Asthan Khagaria, Dhamara ghat ) ५१ शक्तिपीठ मे सँ एकटा माँ कात्यायनी भगवती केर दाहिना भूजा अखनो अहि मंदिर मे मौजूद छनि। जाहिक पूजा वर्षों बरस सँ होइत आबि रहल अछि।
स्कंद पुराण मे माँ कात्यायनी मंदिर के चर्चा 
पौराणिक कथा'क अनुसार अहि मंदिर के चर्चा स्कन्दपुराण मे सहो कैल गेल अछि। अहिके अनुसार कालांतर मे कात्यायन ऋषि कोसी नदी के तट पर रहैथ छलथि। जे प्रत्येक दिन कोसी नदी मे स्नान-ध्यान कऽ माँ कात्यायनी केर आराधना करैत छलथि। हिनक आराधना सँ प्रसन्न भऽ के माँ भगवती दर्शन देलनी। तहिया सँ इ मंदिर माँ कात्यायनी मंदिर'क रुप मे विख्यात भऽ गेल। अहि मंदिर मे देश'क विभिन्न भागक अलावा विदेशों सँ श्रद्धालु मत्था टेकबा के लेल लाबैत अछि। 

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सीरपत महाराज खोजने छलथि माँ केर भूजा 
कहल जाइत अछि जे कालांतर मे अहि इलाका मे राजा मंगल सिंह के शासन भेल करैत छलै। अहि काल मे बीड़ीगमैली निवासी सीरपत महाराज अपन लाखों गाय कऽ लऽ अहि इलाका मे एला। अहि क्रम मे चौथम राज के राजा मंगल सिंह सँ हुनकर मित्रता भेलनि। ताहिक पुरान्त राजा मंगल सिंह इ इलाका सीरपत (श्रीपत) महाराज के अपन गाय'क देख भाल लेल दऽ देलनी। गाय'क देख भालक क्रम मे सीरपत महाराज देखलखिन जे सब दिन एकटा गाय एगो निश्चित स्थान पर जाइत अछि त स्वत: स्तन सँ दूध निकलै लागैत अछि। धीरे-धीरे इ बात राजा के कान तक पहुंचल। राजा स्वयं इ दृश्य देखलनी तऽ दंग रही गेला। स्थलक खुदाई भोल तऽ ओतय माँ के दाहिना भूजा भेटल। जाहिके स्थापित कऽ पूजा अर्चना कैल जाय लगलनि। जे आय माँ कात्यायनी स्थान'क नाम सँ विख्यात अछि। ताहि दिन सँ एतय गाय'क दूध सँ माँ कात्यायनी केर पूजा अर्चना कैल जाइत छनि। 

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कोना जायब :-
सहरसा सँ धमारा घाट रेलवे स्टेशन, दूरी ३५ किमी 
खगडि़या सँ धमारा घाट रेलवे स्टेशन, दूरी २३ किमी 
सड़क मार्ग सहरसा सँ फनगो हॉल्ट, दूरी ४५ किमी 
खगडि़या सँ कोसी बांध, दूरी १६ किमी 
दुनु दिस सँ करीब ५ किमी पैदल चैल कऽ माँ के दरबार पहुंचल जा सकैत अछि।

शुक्रवार, 22 सितंबर 2017

उच्चैठ दुर्गा स्थान, बेनीपट्टी : जतय कालिदास के भेंटलनि ज्ञान

मिथिला धरोहर : मधुबनी जिलाक बेनीपट्टी अनुमंडल सँ मात्र पांच किलोमीटरक दूरी पर उत्तर पश्चिम कोण मे थुम्हानी नदी आ पवित्र सरोवरक तट पर अवस्थित प्रसिद्ध सिद्धपीठ उच्चैठ भगवती स्थान रामायण कालक पूर्व सँ भक्त पर दया करयवाली, चारों पुरुषार्थ अर्थात धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष प्रदान करयवाली मानल जाइत छथि। ( Uchchaith Siddhpith, Benipatti, Mahakavi Kalidas )

महामाया देवी केर संबंध मे प्रकाशित कतेको पुस्तक मे वर्णित तथ्यक अनुसार भारतक कुल ५१ शक्तिपीठ मे उच्चैठ वासिनी सतरहवां शक्तिपीठ अछि। सिंह पर सवार स्वर वनदुर्गा उच्चैठ भगवती केर अढ़ाई फीटक कलात्मक प्रतिमा जे गदा, चक्र, शंख आ पद्य के धारण केने छथि, जिनकर चरण के बामां भाग मे मौजूद मछली प्रतिमाक प्रतीक अछि, त चरणक दहिना भाग नीचा ब्रह्मा जी केर प्रतिमाक प्रतीक अछि, जाहिक शीर्ष पर अनमोल रत्न जड़ित अमूल्य मणि सँ से बनल मुकुट शोभायमान अछि।

श्यामली वर्ण और विशाल नेत्र वाली शुभलोचना चाइर भूजा वाली छथि, जिनकर  पूजा-अर्चना हजारों-हजार वर्ष पूब सँ एतय कैल जा रहल छनि।किंवदंति अछि जे पुरुषोत्तम राम सेहो उच्चैठ मे भगवती दुर्गा केर पूजा केने छथि। उच्चैठ भगवती केर संबंध मे कहल जाइत छनि जे राजा जनक केर यज्ञ भूमि उच्चैठ स्थान अछि आ हुनका वरदानो एतय सँ भेटल छलनी। राम, लक्ष्मण आ विश्वामित्र के दुर्गा केर दर्शनो एतय भेल छलनी।नरलीला लेल उच्चैठ वासिनी एतय सीता रूप मे विराजमान रहल छथि और पांचों पांडव के उच्चैठ भगवती के आशीर्वाद भेटलनि। संगे महा मूर्ख कालिदास सँ विद्वान कालिदास बनबाक आशीर्वाद उच्चैठ भगवती सँ भेटल अछि।

केना मूर्ख कालिदास बनला विद्वान कालिदास
प्राचीन मान्यता अछि जे अहि सँ पूब दिशा मे एकटा संस्कृत पाठशाला छल और मंदिर आ पाठशाला के बीच एकटा विशाल नदी छल। महामूर्ख कालिदास अपन विदुषी पत्नी विद्दोतमा सँ तिरस्कृत भऽ माँ भगवती केर शरण मे उच्चैठ आबि गेला और ओहि विद्यालय के आवासीय छात्र लेल खाना बनेबाक कार्य करय  लगला।

एक बेरा भयंकर बाढ़ी आयल और नदी के बहाव अतेक बेसी छल जे मंदिर मे संझुक दीप जड़ेबाक लेल जाय मे सब असमर्थ छलै। कालिदास केर मूर्ख बुझी हुनका आदेश देल गेलनि जे आय सांझ ओ दीप जड़ा कऽ आबैथ और संगे मंदिर मे कुनो चिन्ह (निशानी) पाइर कऽ आबैथ। तहने कालिदास झट सँ नदी मे कूइद पड़ला और कुनो तरहे हेलैत-हैलेत मंदिर पहुंची दीप जड़ा कऽ पूजा अर्चना केलथि। आब मंदिर चिन्ह पड़बाक छलनी, कालिदास के किछु नै देखेलनी तऽ ओ जड़ैत दीपक कालिख कऽ हाथ पर लगा लेलनि और माँ भगवती के साफ मुखमंडल देख कऽ कालिख लगा देलनी। तहने माता प्रकट भेलखिन और बजला रे मूर्ख कालिदास तोरा एतेक बड़का मंदिर मे कुनो और जगह नै भेटलो और एहन बाढ़ी और घनघोर बारिश मे प्राण जोखिम मे दऽ तु दीप जड़ाबय आबि गेले। 

इ मूर्खता होय या भक्ति मुदा हम तोरा एक वरदान देबय चाहय छी। कालिदास अपन आपबीती सुनेलैथ जे कोना हुनक मूर्खता के कारण हुनक पत्नी तिरस्कृत कऽ भगा देलनी। अतेक सुनी कऽ देवी वरदान देलखिन जे आय  राइत तु जे भी पुस्तक स्पर्श करमें तोरा कंठस्थ भऽ जेतों।

कालिदास लौटला और सब विद्यार्थियों के किताब के स्पर्श कऽ देलनी और मूर्ख कालिदास सँ विद्वान कालिदास भऽ गेला। और आगू जा कऽ विद्वान कवि अभिज्ञान शाकुंतलम , कुमार संभव , मेघदूत आदि के रचना केलथी। अखनो भी ओ नदी, ओहि पाठशाला'क अवशेष मंदिरक निकट मौजूद अछि। मंदिर प्रांगण मे कालिदास केर जीवन सम्बंधित चित्र चित्रांकित अछि।

उच्चैठ देवी स्थान केना पंहुचब
उच्चैठ देवी स्थान बेनीपट्टी सँ ४ कि०मी० पर स्थित अछि लगक रेलवे स्टेशन अछि मधुबनी। सड़क द्वारा इ चारु दिशन सँ जुड़ल छै। अगर अपन गाड़ी नै अछि त बस क द्वारा सेहो एतय जै सकैत अछि। इ सिद्धपीठ सड़क मार्ग द्वारा दरभंगा, सीतामढ़ी आ मधुबनी सँ जुड़ल छैक, अहि स्थान सँ बस और टैक्सी सँ एतय आसानी सँ पहुंचल जा सकैत अछि।

शनिवार, 16 सितंबर 2017

मैथिली किस्सा : गोनू झा के बिलाड़ि

मिथिला धरोहर : गोनू झा के आश्रयदाता राजा बड़ दानी स्वाभाव के छलथि। राजा के अपन राजक दान विभाग लेल एकटा अध्यक्ष के आवश्यकता छलनी। ताहि लेल राजा अपन दरबार के सब सँ योग्य और ईमानदार दरबारी के नियुक्त करबाक चाहैत छलथि। जे सुपात्र के पहचान कऽ ओकरा अपेक्षित दान कऽ सकय। बहुते सोच विचार करबाक उपरांत राजा के एकटा युक्ति सूझलनी।

राजा सब दरबारी के एक एकटा बिलाड़ि (बिल्ली) और एक एकटा महीस (भैंस) देलक।  ओ सब दरबारि सँ कहलैथ - ‘अहाँ सबके जे बिलाड़ि देल गेल ऐछ ओकरा छः महीना धैर पोसबाक लेल अहाँके एक एकटा महीस देल जा रहल ऐछ जेकर दूध बिलाड़ि के पीएबाक ऐछ। छः महिनाक उपरांत जेकर बिलाड़ि सबसँ मोटगर हैत ओकरा पुरस्कार देल जाएत।’

सब दरबारी अपन-अपन बिलाड़ि आ महीस लऽ कऽ चैल देला। सब अपन-अपन महीसक  दूध निकाइल निकाइल कऽ बिलाइर के पूरा मनोयोग सँ पिया बऽ लागल। पुरस्कार जितबाक जे बात छलै।

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गोनू झा सेहो महीस कऽ चराबै लऽ जाय छला, ओकर दूध निकालैत छलखिन आ सबटा दूध बिलाड़ि कऽ पिया दय छलखिन। मुदा गोनू झा के इ सब केनाए ठीक नै लागी रहल छलनी। ओ आहियो गाय-महीस चरेबाक काज नै केने छला और आब कऽ रहल छला ओहो बिलाड़ि के दूध पीएबाक लेल।

अगिला दिन भोरे ओ महीस दुहलाह । दूध औंटबेलाह। गरम-गरम दूधक लोहिया ओ आंगन मे रखलाह आ तत्पश्चात्‌ बिलाड़ि के बड़ प्रेम सँ चुचकारलाह। बिलाड़ि दूध देखैत देरी लगीच पहुँचल। गोनू झा बिलाड़ के गरदनि सँ पकड़लाह आ गरमे दूध मे ओकर मूड़ी डुबा देलनि। बिलाड़ि छटपटायल आ फेर देह झाड़ि ओतय सँ भागी गेल। आब बिलाड़ि दूध के देखैत देरी भागि जाय। गोनू निश्चिंत भेलाह आ शान सँ दूध-दही अपने दुनु परानी खाय लगलाह। धीरे-धीरे छः महीनाक अवधि समाप्त भऽ गेल। ओ दिन आबि गेल जहिया मिथिला नरेश बिलाड़िक प्रतिपालनक लेल पुरस्कार बँटताह। सब कियो अपन-अपन बिलाड़िक संग उपस्थित भेलाह। गोनू झा सेहो अपन सामान्य बिलाड़ि कऽ लऽ दर्बार मे हाजिर भेलाह।

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सबक बिलाड़ि एक सँ एक बलिष्ठ रहै। मिथिला नरेशक लेल निर्णय करब कठिन भऽ रहल छलनी। मुदा गोनूक बिलाड़ि सब सँ कमजोर रहनि। नरेश गोनू सँ एकर कारण पुछलाह। गोनू झा बजलाह - महाराज ! हमर बिलाड़ि तऽ दूध पीबिते नै अछि तखन हम की करी? बिलाड़ि दूध नै पीबैत अछि, एहि गप्प पर सहसा केकरो विश्वास नहि भेलै। तथापि प्रमाणक लेल एकटा बर्तन मे दूध मँगाओल गेल, दूध के देखितहि गोनूक बिलाड़ि ओतय सँ भागय लागल। सौंसे राज-दरबार देखलक जे गोनू झा कहब ठीक छनि। अंतत: मिथिला नरेश बजलाह - बिनु दूध पीने गोनूक बिलाड़ि ठीक छनि तें इनाम गोनू कें भेटबाक चाही। संपूर्ण राजदरबार अचंभित रहि गेल नरेशक निर्णय सँ ।

Note : अहाँके इ खिस्सा केहन लागल अपन विचार कॉमेंट द्वारा दी।  (Gonu Jha Cat Maithili Story)

रविवार, 10 सितंबर 2017

कखन हरब दुख मोर’ के निर्देशन सँ ख्याति प्राप्त संतोष बादल

मिथिला धरोहर : मैथिली फिल्म ‘कखन हरब दुख मोर’ के निर्देशन सँ ख्याति प्राप्त संतोष बादल मूल रूप सँ औरंगाबाद (बिहार) जिलाक, दाउदनगर अनुमंडलक चौरम गामक निवासी छथि। ( Santosh Badal From Aurangabad, Daudnagar ) संतोष बादल वर्ष १९९६ मे अपन गाम सँ मुंबई भागी गेला तहन ओ मात्र १८ साल के छलथि। चुकी हिनका निर्देशक बनबाक छलनी ताहिलेल इंडस्ट्री के जानल मानल निर्देशक होमी वाडिया के अपना गुरु मानी एक साल धरि हुनक बहुते सेबा केलनि। १९९७ धरि निर्देशक बनबाक पूरा फॉर्मूला बुझी विडियो संपादन के काज शुरू केलनि और १९९८ धरि मुख्य संपादक बनी गेला। 

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२१ सालक उम्र मे इंडस्ट्री मे खास जगह बना क साल २००० धरि एडिटरक रूप मे ९ अवार्ड जीतलनी। एकता कपूर के बतौर निर्देशक में पहिल मौका भेटलनि हिट सीरियल साबित भेल 'क्योंकि सास भी कभी बहु थी' सँ तेकर बाद २०१६ के अंत धरि इंडस्ट्री के सबटा सीरियल अपना नाम क आ लगभग ६००० एपिसोडक निर्देशन क चुकल छथि। बतौर निर्देशक हिनका  नौ टा बेस्ट डायरेक्टर अवार्ड भेंट चुकल छनि।हिनका द्वारा निर्देशित हिंदी फीचर फिल्म अछि 'फाइनल मैच' और भोजपुरी फ़िल्म 'खानदान'। टीवी चैनल स्टार भारत पर प्रसारित शो 'ओम शांति ओम' के निर्देशक सेहो रही चुकल छथि।

सोमवार, 4 सितंबर 2017

अनंत चतुर्दशी पूजा 2023 - मिथिलाक अनंत चतुर्दशी व्रत कथा

साल 2023 मे अंनत चतुर्दशी व्रत 28 सितम्बर, 2023, गुरुदिन के अछि।

Anant Chaturdashi,  Anant Puja, मिथिला धरोहर : अनंत भगवान विष्णु सृष्टि के आरंभ मे चौदहो लोक 'तल, अतल, वितल, सुतल, तलातल, रसातल, पताल, भू, भुवः, स्वः, जन, तप, सत्य, आ मह केर रचना कएने छलथि। ओहि सबटा लोकक पालन करबाक लेल स्वयं १४ रूप मे प्रकट भेलाह जाहि सँ अनंत प्रतीत होमय लगलाह। ताहि कारणे अनंत पूजाक दिन एकटा पात्र मे दूध, मधु, दही, घी आ गंगाजल मिला कऽ क्षीर सागरक निर्माण कैल जाइत छैक। फेर कचका ताग सँ बनल चौदह गिठ्ठह वला अनंत सूत्र सँ भगवान अनंत के क्षीर सागर मे ताकल जाइत छन्ही। पूजाक पश्चात अहि ताग के अनंत भगवानक स्वरूप मानि पुरूष अपन दाहिना बांहि पर और स्त्रीगण बामा बांहि मे पहिरय छथि।
अनंत के चौदहो गांठ मे प्रत्येक गिठ्ठह एक एक टा लोक के प्रतीक होइत अछि जाहिक रचना भगवान विष्णु केने छथि। अहि प्रत्येक गिठ्ठह मे भगवान के ओहि चौदह रूप के वास मानल जाइत छनि जे चौदह लोक मे वास करय छथि। शास्त्रक अनुसार उपनयन संस्कारक उपरांते १४ गिठ्ठह वला अनंत कुनो पुरूष के पहिरबाक चाहि आ स्त्रीगण के बियाहक पश्चात। अहिसँ पहिले तेरह गिठ्ठह वला अनंत पहिरबाक चाहि।



Anant Chaturdashi Date 2023, Anant Puja Date 2023 | Thursday, 28 September 2023

अनंत पूजाक कथा
एक बेरा कौण्डिल्य मुनि के पत्नी शीला सुख-संपत्ति के इच्छा सँ अनंत चतुर्दशी के व्रत रखलनि। ताहि उपरांत अनंत सूत्र के अपन बामा बांहि मे बैन्ह लेलनि। भगवान अनंत केर कृपा सँ शीला धन-धान्य संपन्न भऽ गेली। एक दिन कौण्डिल्य मुनि केर नजैर शीला के बांहि पर बाँधल अनंत सूत्र पर गेलनि। कौण्डिल्य मुनि के लगलनी जे इ कुनो जादू-टोना के धागा अछि और ओहिके तोइड़ आइग मे फेंक देलनी। अहिसँ अनंत भगवान रुष्ट भऽ गेलखिन। किछये दिन मे कौण्डिय मुनि और शीला फेर सँ  गरीब भऽ गेला। शीला कहलनि जे अहाँ अनंत सूत्र के तोइड़ के जड़ा देने छी ताहिलेल हमरा गरीबी के दिन देखय पड़ी रहल अछि। शीला के बात सुनि कौण्डिल्य मुनि के अपन केलहा पर पछताबा होमय लगलनि। कौण्डिल्य मुनि अनंत भगवान सँ छमा मांगय लगला। एक दिन गरीब ब्राह्मणक भेष मे अनंत भगवान कौण्डिल्य मुनि के आश्रम मे पधारलनी और मुनि सँ कहलनी जे अहाँ पत्नी सहित अनंत भगवान केर पूजा करु ताहिसँ अहाँक गरीबी दूर भऽ जाएत। ब्राह्मण केर आज्ञा मैन मुनि पत्नी सहित अनंत भगवान केर व्रत केलनि और अनंत सूत्र बांहि पर बान्हलनी जाहिसँ हुनक गरीबी समाप्त भऽ गेलनि। अहि व्रत के नियम अछि जे व्रती के खेनाइ मे नून कऽ प्रयोग नै करबाक चाहि।

शनिवार, 2 सितंबर 2017

लधु कथा : हम मिथिलाक वासी छी

मिथिला धरोहर, लधु कथा : मिथिला नगरी के एकटा मेहतर अयोध्या मे आबि के रहय लगला। ओ सीता-राम केर परम भक्त और सेवा भावी छलथि। ओ श्रीराम जी केर मंदिर मे आबय वला तीर्थयात्रि के लेल रस्ता साफ करय छलैथ और हर क्षण प्रभु केर जाप करैत छलैथ। 

एक दिन हुनका पता चललैन जे सीता जी केर एकटा परम भक्त साधु सीतासरन जी अवध मे रही के भक्ति और उपासना मे लीन रहैत छथि।ओ ओतय हुनकर कुटिया मे जा पहुंचला। सीतासरन जी सरयू नदी मे स्नान करवाक लेल कुटिया सँ बाहर निकल'लथि, तऽ हुनका ओ बाहर ठाड़ देखलनि। ओ पूछलैथ, अहाँ के छी ?

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ओ उत्तर देलथि, महाराज, हम मिथिलाक रहय वला छीं। जनक जी केर परिवारक मेहतर छिं। इ सुनितेह संत सीतासरन जी हुनका साष्टांग प्रणाम केलनि और कहलथि हमर भाग्य जागी गेल जे महारानी सीता जी केर पीहरक सेवक के दर्शनक सौभाग्य भेटल।

ओ व्यक्ति संकोच सँ बजला, बाबा, अहाँ साधु छी, हमरा अधम के प्रणाम क अहाँ नीक नय केलहु। हमरा पापक भागी बना देलहु। संत जी बजला, अधम जाति सँ नय, दुष्कर्म सँ बनैत अछि। अहाँ निश्छल हृदय भक्त छी। अपनाके अधम मानी क संशय नय पोसब। अधम तऽ ओ अछि, जे दोसरके नीच मानैत अछि।

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एक दिन सीता रानी सीतासरन सँ सपना मे कहलनि, हम तोरा विनम्रता सँ प्रसन्न छी। जेखन तू हमरा सेवक के साष्टांग प्रणाम केलय, तऽ बुझ जे हमरे नमन केलय।

इ सुनि संत सीतासरन जी गद्गद भऽ उठलाह।