नैहर हमर जनकपुर रे सखिया,
सासुर दूर के देश
आमा मोर आजु एकसरि सुतती,
छनेछन उठती चेहाय
किए जे देखि आमा धैरज धरती,
किए देखि रहती लोभाय
फूल जे देखि आमा धैरज धरती,
फल देखि रहती लोभाय
पलंगा बैसल हमर बाबा कनै छथि,
मचिया बैसल हमर माय
डोलिया के खूंटी धय सखि सभ कनै छथि,
आब सखि सासुर जाय
घुरू भइया घुरू सखि सभ,
अहूँ सभ घूरि घर जाउ
हमरो आमा जे कनैत हयती,
हुनिका कहब बुझाय
भनहि विद्यापति सुनू हे सखि सभ,
सभ बेटी सासुर जाय
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